(हास्य व प्रेरक व्यंग्य)
'अजी पत्रकार जी, उठिए। वरना ऑफिस जाने में देर हो जाएगी।' पत्नी पति को जगाते हुए बोली।
'ओफ्फो, हद कर दी तुमने!' पति महोदय उठकर झल्लाए।
पत्नी जानना चाही, 'आखिर क्या हो गया?'
पति मूड को कुछ ठीक कर बोले, 'सारा मजा किरकिरा कर दिया तुमने। क्या प्रेरक सपना था!'
पत्नी उत्सुक होकर चेहरे पर मुस्कान ला शब्दों में मिश्री घोलते बोली, 'जरा मुझे भी सुनाओ।'
पतिदेव व्याख्यान शुरू किए-स्वर्ग में नारद जी के आग्रह पर भगवान विष्णु के आहुति पर समस्त देवता गण सिंहासन पर विराजमान हैं। भगवान नारद के बेचैनी को देखकर भगवान विष्णु प्रश्न किए, 'कहिए मुनिवर क्या माजरा है?'
नारद बोले, 'नारायण-नारायण। प्रभु संपूर्ण मृत लोक (पृथ्वी) पर त्राहि-त्राहि मची है। कामकाज ठप है। मृत्यु का क्रम जारी है। कर्फ्यू लगा हुआ है। यह खतरनाक वायरस... ।' वह कुछ भूलने लगे।
तभी ब्रह्माजी बोले, 'ना रोको' स्वयं को अब नारद। साफ-साफ बताओ।'
ना रोको सुनकर नारद को फौरन याद आया। इस शब्द को उल्टा कर बोले, 'प्रभु, याद आया। कोरोना... कोरोना वायरस ने संपूर्ण धरा पर आतंक मचाया हुआ है। लोग असमय काल के गाल में समा कर भूत-प्रेत बनते जा रहे हैं। यमलोक में भी भीड़ लगा रहे हैं।
भगवान ने यमराज पर निगाह डाली। वह फौरन भांपे और प्रत्युत्तर दिए, 'हे अंतर्यामी, पृथ्वी पर अत्याचार, बढ़ती जनसंख्या, फाइव स्टार होटल संस्कृति, हवाई यात्रा, फूहड़ मनोरंजन, सीएए का विरोध प्रदर्शन, प्रकृति से छेड़छाड़, वगैरह-वगैरह अपने चरम पर है। मानव अधर्म अपने पराकाष्ठा पर है। मैंने विभिन्न आपदा विभागों के देवताओं से निवेदन कर उनके द्वारा भारी वर्षा, सूखा, बाढ़, भूस्खलन, भूकंप, सुनामी, तूफ़ान आदि का कहर बरपाया गया परंतु यह लोभी मानव रुके तब ना?
इस पर नारद जी का धैर्य जवाब दे गया। वे तपाक से टोके, 'यमराज जी, आपके किंतु-परंतु-लेकिन-अगर-मगर से आम जनमानस, परीक्षार्थी, मजदूर भी परेशान हैं।'
चित्रगुप्त नारद जी को समझाएं, 'ऋषिवर, गेहूं के साथ तो घुन भी पिसता है। कर्मफल तो सभी को भोगना पड़ता है।
नारद जी आगबबूला हुए, 'यह कदापि उचित नहीं है चित्रगुप्त जी।'
देवाधिदेव शंकर जी ने नारद को शांत करना चाहा, नारद जी। यहां क्रोध करना अनुचित है। मानव कार्यप्रणाली से मेरा मन भी तीसरी आंख खोलने को कहता है। किंतु महाविनाश का ख्याल आते ही ठंडा पड़ जाता हूं। कोरोना वायरस रूपी अस्त्र ही सचेतक के रूप में पर्याप्त है।'
नारद जी रुंआसे होकर हाथ जोड़े और गिड़गिडाए, 'प्रभु आप ही कुछ करें। मुझसे मानव पीड़ा देखी नहीं जाती।
विष्णु भगवान कुछ पल ध्यान किए फिर समस्या समाधान बताया, 'मुनिवर, चिंतित होने की बात नहीं है। बुद्ध देने वाला भारत देश की स्वस्थ संस्कृति, स्वच्छता, जीव-प्रेम, सम्यक रहन-सहन, शाकाहारी खानपान, प्रकृति-प्रेम, उच्च आदर्श के अनुसरण से ही इस महामारी पर काबू पाया जा सकता है।'
सभी देवताओं ने भगवान के सुझाव का समर्थन कर एक स्वर से उद्घोष किए, 'ईश्वर सबको सद्बुद्धि दे।'
(ये लेखक के अपने काल्पनिक विचार हैं)
डाॅ. नवचंद्र तिवारी शिक्षक और साहित्यकार, बलिया