वैसे तो मैं अपने देश की आर्थिक स्थिति के बारे में लिखना नही चाह रहा था , विवादों से बचना चाहता था। देश की गिरती अर्थव्यवस्था पर चिंतित होता था पर फिर सोचता था कि *यह उम्र अब चिंता की नही है'शांति की है, जब युवा वर्ग चिंतित नही हो रहा तो तुम भी मस्त रहो।*
अब चूँकि कर्मचारियों और पेंशन भोगियों का डी ए फ्रीज किया गया है जिसमें मैं भी हूँ अत: अर्थव्यवस्था से सम्बंधित कुछ तथ्य लिख रहा हूं -
जहां मुझे इस बात की तो खुशी है कि देश की आर्थिक हालात सुधारने के लिये हम कर्मचारियों/पेंशनधारियों का भी कुछ योगदान हुआ, वहीं यह भी कहने का मन है कि पिछले करीब डेढ दो साल साल से हमारी जी डी पी लगातार गिरती जा रही थी, विदेशी व्यापार गिर रहा था, मध्यवर्ग की खपत (खरीददारी क्षमता) घट रही थी, लम्बी महामंदी के दौर से हम गुजर रहे थे।बेरोजगारी उच्चतम शिखर पर थी। बैंक का कर्ज /ऋण बढ़ता जा रहा था।विदेशी निवेश आ नही रहा था ,घरेलू बचत घटती हुई अपने निम्नतम स्तर पर पहुँच गयी थी पर कहीं भी कोई विशेष चिंता नही दिख रही थी।लोगो को चिंतित न देखकर 02 अगस्त 2019 को पत्रकार राजदीप सरदेशाई ने प्रधानमंत्री जी को खुला पत्र लिखा , जिसे आप गूगल पर देख सकते है जिसमें उन्होंने अनुरोध किया था कि बिगडती आर्थिक स्थिति की ओर प्रधानमंत्री जी तत्काल ध्यान दे।
अब एक और महामारी कोरोना भी आ घमकी है।पिछले करीब चालीस दिनों में ही (कोरोना कहर के बाद) विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से? *1.23 लाख करोड़ रुपये निकाल ले गए है*।रिजर्व बैंक ने पिछले एक माह में करीब 17अरब डॉलर न बेचे होते तो ( *दस साल की सबसे बड़ी बिक्री*), डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट हमें हैरान कर देने वाली होती।
अब चूंकि भयंकर मंदी का दौर है , तो जरूरत है मांग बढ़ाने की, लोगो की जेब में पैसा डालने की जिससे खरीददारी बढ़े,खपत बढ़े,आर्थिक पहिया धूमे न कि पैसा जेबों में पहुंचने से रोकने की। दूसरा जब सरकार ही अपने कर्मचारियों का डी ए फ्रीज करेगी तो *वह नैतिक दृष्टि से प्राइवेट कम्पनी वालों को कैसे रोकेगी कि वे अपने कर्मचारियों की छटनी न करे या तनख्वाह न घटाये।*
*शैलेन्द्र प्रताप सिंह*
भारतीय पुलिस सेवा (अवकाश प्राप्त)