आइए धरती का कर्ज उतारें : रवीश


पृथ्वी दिवस पर विशेष :-


धरती बचाओ,जीवन बचाओ,जीवन को खुशहाल बनाओ


22अप्रैल 1970 ई०को पहली बार मनाया गया पृथ्वी दिवस




आज पृथ्वी दिवस के पूरे पचास साल हो गए। पहली बार 22 अप्रैल 1970 ई० को पृथ्वी दिवस मनाया गया।यह दिवस आधुनिक पर्यावरण आंदोलन की शुरुवात को चिन्हित करता है। पहली बार बीस लाख अमेरिकी लोगों ने इसमें एक स्वस्थ,स्थायी पर्यावरण के लक्ष्य के साथ भाग लिया। पृथ्वी बहुत वयापक शब्द है जिसमें


जल,हरियाली,वन्यप्राणी,प्रदूषण और इससे जुड़े अन्य कारक भी हैं।अमेरिका में इसे वृक्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है।
पृथ्वी के पर्यावरण को बचाने के लिए हम कम से कम इतना तो जरूर करें कि पालीथिन का उपयोग न करें,कागज का इश्तेमाल कम करें और रिसाइकल प्रक्रिया को बढ़ावा दें, क्योंकि जितना अधिक खराब सामग्री रिसाइकल होगी उतना ही पृथ्वी का कचरा कम होगा।


पृथ्वी ही एक मात्र ऐसा ग्रह है जो प्राणि मात्र के रहने के लिए है।आज इस ग्रह पर मंडराते खतरे को लेकर पूरी दुनिया चिंतित है।ऐसे में यह सवाल स्वभाविक है कि आखिर संकट के ऐसे हालात क्यों बनें ? जवाब भी साफ है कि अपने लिए ज्यादा से ज्यादा सुख साधन,विलासिता और एक दूसरे से आगे निकल जाने की होड़ में इंसान खुदकशी का इंतजाम कर लिया है।वे तमाम साधन हमने पैदा कर लिए जो समूचे सृष्टि के लिए खतरनाक हो सकते हैं।हमने यह नही सोचा कि जिस विकास की बात हम करते हैं उसका आखिर हमें कितना मूल्य चुकाना पड़ रहा है।सवाल उठता है कि क्या खुद की बर्बादी को आमंत्रित करने वाला ऐसा ही विकास चाहते हैं हम ? कोशिस बस इतनी हो कि जो विनाश हो चुका उसे स्वीकार कर लें और भविष्य में और विनाश न होने दें!हम उस अंधे मोड़ के तरफ न जायें जहां से वापसी का कोई रास्ता ही नही।


पृथ्वी दिवस के आज पूरे पचास साल पूरे होने पर *गूगल ने अपने डूडल* को पृथ्वी के सबसे छोटे व सबसे महत्वपूर्ण जीव *मधुमक्खियों* को समर्पित किया है।ये परागण विधि द्वारा दुनिया की फसलों का दो तिहाई योगदान करती हैं।इसका थीम *क्लाइमेट एक्सन* रखा गया है।
इस आंदोलन को यह नाम 1969 ई० में *जूलियन कोनिग* द्वारा दिया गया।


पृथ्वी दिवस का उद्देश्य लोगो को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाना है।पृथ्वी पर अक्सर उत्तरी ध्रुव की ठोस बर्फ का कई किलोमीटर तक पिघलना,सूर्य की पराबैगनी किरणों को पृथ्वी तक आने से रोकने वाली ओजोन परत में छेद होना ,भयंकर तूफान , सुनामी सहित और भी कई प्राकृतिक आपदाओं के होना ,जो भी हो रहा है इन सबके लिए मनुष्य ही जिम्मेदार है।ग्लोबल वार्मिंग के रूप में जो आज हमारे सामने है।ये आपदाएं पृथ्वी पर ऐसे ही होती रहीं तो वह दिन दूर नही जब पृथ्वी से जीव-जंतु व वनस्पतियों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा । जीव -जंतु अंधे हो जाएंगे ,लोगों की त्वचा झुलसने लगेगी और कैंसर रोगियों की संख्या बढ़ जाएगी।