आप न तो मुसलमानो को जानते हैं न जानना चाहते हैं : मेराज अब्दुल्ला


 


एक औसत मुसलमान से पूछिये 'गणेश भगवान कौन हैं' वो सतही तौर पर पहचानता होगा, नवरात्र कब होते हैं, शिव जी की पत्नी कौन हैं, कृष्ण ने किसका वध किया, उसे पता होगा। लेकिन आप मुसलमानों के बारे में कितना जानते हैं? ईमानदारी से बताइयेगा कि इस समाज को कभी करीब से देखने की कोशिश की है आपने? या 'टीवी वाले मुसलमान' को ही 'मुसलमान' समझा है, वो 'टीवी वाला मुसलमान' जिसके मुहल्ले की गलियों में हमेशा 'चांद-तारे' वाली झंडिया सजी होती हैं, दरवाज़े हरे होते हैं, जो जालीदार बनियान पहनता है, उसके गले में तावीज़, सर पर टोपी और आंखों में सुरमा होता है .. अगर हां, तो सच तो ये है कि हज़ारों साल की साझा संस्कृति के बावजूद आपने मुसलमानों को कभी नहीं जाना। न आप जानते हैं और न जानना चाहते हैं। कल एक न्यूज़ चैनल पर अपनी एक पुरानी दोस्त को ख़बर पढ़ते हुए देख रहा था। उसने कहा, 'फलां गांव में एक ग़ैर मुस्लिम लड़की को उर्दू से इतना लगाव था कि उसने पूरी क़ुरान पढ़ डाली'। इतने साल मुसलमान दोस्तों के बीच रहने के बावजूद जब आप इतना नहीं जान पाए कि कुरान 'उर्दू' में नहीं 'अरबी' में है, तो आप कैसे ये उम्मीद लगा सकते हैं कि हिंदुस्तानी मुसलमान इस मुल्क में उसी तरह रहे जैसे आप रहते हैं। इतने सालों में आपको ये अंदाज़ा नहीं हुआ कि मुहर्रम हैप्पी नहीं होता तो आप मुसलमानों के बारे में कोई भी राय कैसे बना सकते हैं। जब आप हर साल आखिरी रोज़े पर अपने मुस्लिम दोस्त को मैसेज करके पूछते हैं 'ये मीठी ईद है या गोश्त वाली?' तो आप अपने और उस दोस्त के बीच का फ़ासला बढ़ा लेते हैं।


दिल्ली के मालवीय नगर इलाके में एक जगह है खिड़की एक्सटेंशन, जहां अफ्रीकी लोग भी रहते हैं। मैं वहां अपने एक दोस्त, जो कि गोवाहटी का रहने वाला है, से मिलने जाता हूं तो उन अफ्रीकी लोगों को अक्सर आते-जाते देखता हूं। उनका रहन-सहन, बातचीत, बर्ताव सब अलग है। जब मैं किसी स्थानीय शख्स से उन अफ्रीकी लोगों की बात करता हूं तो अंदाज़ा होता है कि वो, उनके बारे में कुछ नहीं जानते, शायद इसीलिए वो उन्हें हमेशा संदिग्ध लगते हैं। मेरा दोस्त भी, पंद्रह साल से वहीं रहने के बावजूद उनके बारे में कुछ नहीं जानता सिवाए इसके कि वो लोग ड्रग्स लेते हैं और साइबर क्राइम करते हैं। यही उनकी छवि है और हम ऐसे ही उन्हें जानते हैं, क्योंकि हमने कभी उन्हें करीब से नहीं देखा। उनके बारे में जानने की कोशिश नहीं की, मत कीजिए। ठीक है, आप नहीं जानना चाहते उनके बारे में तो मत जानिये, वो तो इस ज़मीन के हैं भी नहीं, आए हैं-चले जाएंगे, लेकिन मुसलमान तो इसी मुल्क का है, यहीं पैदा हुआ है, यहीं मरेगा, आपके साथ। मुसलमान को मालवीय नगर का अफ्रीकी मत बनाइये। क्योंकि, जिसके बारे में आप नहीं जानते वो 'संदिग्ध' ही लगता है।


साभार. जमशेद कमर सिद्दकी