बाबासाहब और ओबीसी वर्ग : अनिल यादव


बाबासाहब जयंती के अवसर पर मैंने एक विडिओ क्लिप डाली थी यह कहते हुए की ओबीसी समाजने कोरोना के चलते डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर की जयंती घर घर में मनाई. इस क्लिप में मैंने ये भी कहा था की बाबासाहब ने अपने कायदेमंत्री पद क्या त्याग ओबीसी समाजके लिए दिया क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री वक्त जाया कर रहे थे और ओबीसी जतियोंकी पहचान करने के लिए कमीशन नियुक्त नहीं कर रहे थे. उसपर मेरे कुछ टीकाकार मित्रोने बहस शुरू कर दी की बाबासाहब ने त्यागपत्र ओबिसिके वास्ते नहीं तो हिन्दू कोड बिल के अनदेखी के वजहसे दिया; और मेरी पोस्ट को बेप्रभाव करनेकी नाकाम कोशिश की. कुछ लोगोने यह भी कहा की हमने डॉ जब्बर पटेल दिग्दर्शित डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर यह सिनेमा देखा और उसमे साफ तौर पर दिखाया गया है की बाबासाहब ने राजीनामा हिन्दू कोड बिल की वजहसे दिया और ओबीसी के वास्ते नहीं. इसलिए ये लेख लिखना मेरे लिए जरुरी हो गया. मेरे क्लिप पर टिपण्णी करने वालोंको मई पूछना चाहता हु क्या किसीभी सिनेमा में डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकर जैसे महान युगपुरुष का पूरा जीवन बताया जा सकता है ? बिलकुल नहीं. दूसरी बात क्या उस सिनेमा में बाबासाहब ने दिया हुवा पूरा त्यागपत्र दिखाया गया? बिलकुल नहीं. एक सिनेमा बनानेवालेपे वक्त और लागत के चलते कई बंधन होते है. मगर मै मेरे उन भाइयो से जरुर चाहूँगा की वे बाबासाहब आंबेडकर का राजीनामा पत्र खुद पढ़े. हा मै ये जरुर मानता हु की बाबासाहब ने जिस वजहसे त्यागपत्र दिया था उसमे का एक कारन हिन्दू कोड बिल की अनदेखी जरुर थी. बाबासाहब ने जो दो तीव्र विषमताए हिन्दू समाज में देखि वे थी जातीय विषमता और स्त्री-पुरुष विषमता. हिन्दू कोड बिल निश्चित तौर पर स्त्री-पुरुष विषमता नष्ट करनेका सबसे बड़ा दस्तावेज था; स्त्रियोंको पुरुषोंके बराबर सभी क्षेत्र में अधिकार देनेवाला प्रभावी हथियार था. तो चलते है बाबासाहब के त्यागपत्रके कुछ महत्वपूर्ण अंशपर ..जो मैंने जैसे के वैसे अंग्रेजीमे लिखे है ..


To leave inequality between class and class, between sex and sex, which is the soul of Hindu Society untouched and to go on passing legislation relating to economic problems is to make a farce of our Constitution and to build a palace on a dung heap.


यहाँ बाबासाहब सबसे पहले जातीय विषमता (inequality between class and class) का जिक्र करते है और बादमे स्त्री-पुरुष विषमता (between sex and sex) का जिक्र करते है. और कहते है हिन्दू समाजकी  इस विषमताओंको  छोड़कर सिर्फ आर्थिक मामले के कानून पास कर लेना ये संविधान का सबसे बड़ा मजाक होगा; जैसे की गोबर पर महल बांधना.  बाबासाहब के लिए ये दोनों विषमताए नष्ट होना जरुरी है; मगर किसी एक विषमता को पहले और दुसरे को बादमे लिखना जरुरी था ; उसमे भी वे जातीय विषमता यह शब्द प्रयोग पहले करते है और बादमे स्त्री-पुरुष विषमता. हाला की ये दोनों विषमताए नष्ट होना जरुरी था. 


अब मै बाबासाहब के त्यागपत्र का एक दूसरा महत्वपूर्ण अंश अग्रेजी में जैसे है वैसे रख रहा हुं .


I was very sorry that the Constitution did not embody any safeguards for the Backward Classes. It was left to be done by the Executive Government on the basis of the recommendations of a Commission to be appointed by the President. More than a year has elapsed since we passed the Constitution. But the Government has not even thought of appointing the Commission.


वाचको के लिए मै इसका हिंदी अनुवाद करता हू . बाबासाहब SCHEDULE CATSE शब्दका प्रयोग अनुसूचित जातिके लिए और BACKWARD CLASSES यह शब्दप्रयोग ओबीसी के लिए करते थे .


बाबासाहब लिखते है :


“मै बहोत दुखी हु की संविधान में ओबीसी के लिए कोई आरक्षण लागु नहीं किया गया. यह पूरी तरह कार्यकारिणी सरकार के ऊपर छोड़ दिया गया है की राष्ट्रपतिने नियुक्त किये गए कमीशन के अनुरोध पे वे कुछ करे. अब भारत का संविधान लागु होके एक सालसे ज्यादा का समय बित चूका है. मगर सरकारने तो कमीशन नियुक्त करनेके बारे में सोचा भी नहीं है.”


बाबासाहब ने १० ओक्टोम्बर १९५१ को त्यागपत्र दिया था ; जबकि भारत का संविधान २६ जनवरी १९५० को लागु हो गया था ; यानेकी संविधान लागु होके एक सालसे ज्यादा समय बिट गया था. बाबासाहब उपरोक्त जिस कमीशन की बात कर रहे है वो कमीशन भारत के संविधान के कलम ३४० के तहत नियुक्त करना था. 


बाबासाहब ने अपना त्यागपत्र देनेके और भी कुछ कारन बताये है. अभ्यासको को मै कहूँगा की वे पूरा त्यागपत्र पढ़े.


बाबासाहब ये भी लिखते है की कई बार ऐसा भी होता है की कई मंत्री बगेरे राजीनामा पत्र लिखे राजीनामा दे देते है; मगर मै एइसा इस लिए भी नहीं कर सकता की पत्र न लिखनेकी जो गैप मै छोड़ दू तो इस देशके पत्रकार वो गैप अपने आप ही भर देते और कह देते की बाबासाहब ने तबियत के कमजोर रहते त्यागपत्र दे दिया ; और मेरे त्याग पत्र का सही  कारन कभी सामने नहीं आता. 


बाबासाहब लिखते है मेरे लिए त्यागपत्र लिखना मात्र ही जरुरी नहीं तो वो मेरा कर्तव्य भी बनता है.


आज बाबासाहब का लिखित त्यागपत्र होनेके बाद हमारे ओबीसी समाज को भटकाया जाता है; तो त्यागपत्र उपलब्ध नहीं होता तो क्या होता ; ये वाचक ही भलीभाती समझे. 


यहाँ मै अपनी ये बात भी जोड़ना चाहता हु की भारत के संविधान में ओबीसी वर्ग को अपने प्रगति के  कुछ सुरक्षित उपाय मिले; इसलिए तत्कालीन आल इण्डिया ब्यकवर्ड क्लास फेडरेशन के अध्यक्ष भाऊसाहेब पंजाबराव देशमुख और महासचिव त्यागमूर्ति  आर. एल. चंदापुरी और तमिलनाडु के महान नेता पेरियार रामासामी बाबासाहब आंबेडकर से निरंतर चर्चा में रहते थे; बाबासाहब के साथ आन्दोलन में शरीक रहते थे; इतना की त्यागमूर्ति चांदपुरी जी को बिहारका आंबेडकर इस नामसे पहचाना जाता था. 


जय जय संविधान  


साभार- प्रदीप ढोबले BE MBA BA LL.B.