भारतीय आसानी से करोना को कर सकते हैं पराजित : सुमन बी आनन्द



अब तक के उपलब्ध आँकड़ों से यह पता चल रहा है कि भारतीय जलवायु कोरोना वायरस के पोषण के अनुकूल नहीं है। पूरे भारत भूमि में कहीं भी कोरोना स्वतः उत्पन्न नहीं हुआ है, बल्कि किसी न किसी देंश से आनेवालों के साथ आया है।अब तक जितने भी इस वायरस से प्रभावित चिन्हित हुये है वे किसी न किसी देश से जल्द ही भारत आये हैं।


अमूमन यह देखा गया है कि किसी अन्य जलवायु का उत्पन्न वायरस किसी अन्य जलवायु में या तो अपनी मारक क्षमता खो देता है या अत्यंत भयानक रूप ले लेता है। प्रयंः जहाँ की जलवायु उस जीवाणु या बिशाणु के बिपरित होती है वहाँ वह अपेक्षाकृत कम मारक होता है और उसका फैलाव भी धीमा होता है, और कुछ ही दिनों मे वह लगभग निष्प्रभावी हो जाता है। इसके बिपरित जिन भूभागों की जलवायु अनुकूल होती है वहाँ वह महामारी का रूप ले लेता है।


करोना चीन के बुहान क्षेत्र से उत्पन्न हुआ है जो एक ठंढा भौगोलिक क्षेत्र है और अमेरिका, इटली, फ्रांस ,जर्मनी इत्यादि देशों में महामारी का रूप ले चुका है। जबकि अफ्रीका और अरब के गर्म क्षेत्रों मे इसका फैलाव और कहर अपेक्षाकृत कम है। मतलब साफ है कि ठंढी जलवायु इस वायरस के अनुकूल और गर्म जलवायु इसके प्रतिकूल है।अतः इसके फैलाव की गति भारत मे धीमी होगी और जल्द ही इसकी शक्ति क्षीण हो जायेगी ।


अगर भारतीय समाज कड़ाई से लाकडाउन का पालन करता है और अपनी संवेदनाओं पर नियंत्रण रख बाहर निकलने , लोगों से मिलने जुलने, सामूहिक कार्यक्रमों से दूरी बनाने, भोजन, ब्यायाम करने का कड़ाई से पालन करता है तो निश्चित रूप से भारतीय जनमानस करोना को पराजित कर अपने देश और देशवासियों को सुरक्षित बचा सकता है।


बिदेशी या बाहरी सूक्ष्मजीव प्रायः स्वयं तो किसी अन्य भूभाग मे बहुत खतरनाक या महामारी का रूप लेने मे, यदि परिस्थितियाँ उनके अनुकूल नही है तो सक्षम नहीं होते, परन्तु यदि वे किसी न किसी स्थानीय सीजनल रोग से जब युग्मित हो जाते है यानि किसी स्थानीय सीजनल रोग से मिल जाने के बाद महामारी का रूप ले सकते हैं।


प्रकृति के जानकारों के अनुसार जिस साल गर्मी के शुरूआती मौसम में गाँवों मे स्वतः उगने वाले भटकोआँ के पौधे हर साल की अपेक्षा ज्यादा उगने लगें और ज्यादा मजबूत और बड़े आकार में दिखाई दें, उस साल हेपेटाइटिस बी रोग के फैलने की सँभावना ज्यादा होती है। अतः यह तय तो नहीं है कि करोना और हेपेटाइटिस बी का युग्म बनेगा ही, परन्तु एक संभावना तो हो ही सकती है। भटकोआँ का मटर के दाने जैसे काले काले फल जो स्वाद मे खट्टे मीठे लगतें है हेपेटाइटिस बी रोकने की दवा हैं। अतः हर ब्यक्ति को दो चार दाने दो चार दिन खा लेना चाहिए।


इस प्रकार हम भारतवासी करोना को इस जंग मे लाकडाउन का पालन कर पराजित कर सकतें हैं,और भारतीय आवाम को सुरक्षित रख सकतें हैं। करोना का उद्गम चूकि चीन है अतः उसकी प्राकृतिक दवा की जड़ी बूटी चीन मे ही पैदा होगी किसी अन्य देश में नहीं, अतः हमे करोना के साथ साथ इस मौसम में होने वाले मौसमी रोगों से भी सावधानी बरतने की जरूरत है। तभी हम करोना को पराजित कर अपनी आवाम को बचा पायेगें।