बिहार में लाखों शिक्षकों की हड़ताल और 42 शिक्षकों की मौत

ठेकाकरण की नीतियों की भेंट चढ़ते शिक्षक


भारत में नई आर्थिक नीतियों के आगमन के बाद 'सर्वांगीण विकास' के लिए अपनाई गई लगभग सभी नीतियों के बेहद गंभीर नकारात्मक परिणाम हर क्षेत्र जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य आदि पर दिखाई देने लगे हैं।


इन नीतियों का खामियाजा बड़े पैमाने पर आमजन को भुगतना पड़ रहा है। जिसका एक उदाहरण आज हम बिहार में लाखों शिक्षकों की हड़ताल के रूप में देख सकते हैं। बिहार में 4.5 लाख ठेके पर नियोजित अध्यापक 17 फरवरी से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए हैं। उनकी आठ सूत्रीय मांगे निम्नलिखित हैं।


1. समान काम का समान वेतन।
2. रिटायरमेंट की उम्र 65 करने।
3. पुरानी पेंशन योजना लागू करने।
4.स्वयं को राज्य कर्मचारी का दर्जा देने वाली मांगे प्रमुख हैं।


25 फरवरी को शेष बचे 50,000 सरकारी अध्यापक भी उनके समर्थन में हड़ताल पर चले गए। इन अध्यापकों में प्राइमरी से लेकर इंटरमीडिएट तक के अध्यापक हैं। सरकार ने हड़ताल को अवैध करार दे दिया और शिक्षकों पर सख्त कार्यवाही की बात करते हुए 20,000 शिक्षकों को बर्खास्त कर दिया। इतने दमन के बावजूद शिक्षक अपनी मांगों पर जद्दोजहद जारी रखे हुए थे। लेकिन देश में कोरोना महामारी के प्रकोप को बढ़ता देख राज्य तथा केंद्र सरकार ने लॉक डाउन का फैसला लिया। लॉक डाउन की अवधि धीरे-धीरे और बढ़ती गई तमाम मेहनतकश लोगों की भांति इनकी भी हालत दयनीय हो गई।


इस हड़ताल के दौरान 42 शिक्षक अपनी जान गवा चुके हैं। जिनमें से अधिकांश की मृत्यु की वजह हार्ट अटैक और तनाव पाया गया है। शिक्षकों की मौत यहां पर कोई सामान्य मौत नहीं है बल्कि राज्य सरकार के गैर जिम्मेदार रवैए के परिणाम स्वरूप इनकी मृत्यु हुई है। जिसे लेकर अभी तक पूरी राज्य सरकार में चुप्पी छाई हुई है। इन शिक्षकों की मौत अपना वाजिब हक मांग रहे उन सभी नागरिकों को एक चेतावनी मात्र है।


बिहार राज्य में प्राथमिक से लेकर 12वीं तक कुल 5 लाख शिक्षक हैं जिसमें 4.5 लाख शिक्षक ठेके पर नियोजित हैं। इतनी बड़ी संख्या में ठेके पर शिक्षकों को नियोजित करना दिखलाता है कि सरकार शिक्षा को लेकर खुद कितना गंभीर है शिक्षा देने वाले शिक्षक खुद ही असुरक्षा के साए में जीते हैं। कब उनकी सेवा समाप्त कर दी जाए यह उन्हें खुद मालूम नहीं होता। शिक्षण कार्य के अलावा भी गैर शिक्षण कार्य करवाकर शिक्षकों के श्रम का दुगना दोहन किया जाता है।


*नई आर्थिक नीतियों की मुख्य विशेषता ठेकेदारी प्रथा ही इन शिक्षकों एवं इनके जैसे श्रमिकों की बुरी स्तिथि का कारण है। संघर्षरत शिक्षकों को अपने संघर्ष के साथ इस बात को भी संज्ञान में लेना चाहिए कि क्यों उन्हें इतनी बड़ी संख्या में ठेके पर नियोजित किया गया? इसका जवाब उन्हें 1991 की नई आर्थिक नीति में मिलेगा कि किस प्रकार इसके द्वारा स्थाई नौकरियों को खत्म किया गया और ठेके और आउटसोर्सिंग के जरिए भर्ती मजदूर और कर्मचारियों की संख्या बढ़ती गई। शिक्षकों को अपने संघर्ष के साथ नई आर्थिक नीतियों के खिलाफ भी हल्ला बोलना चाहिए तभी उन्हें दीर्घकालीन विजय मिल सकती है।*


परिवर्तनकामी छात्र संगठन संघर्षरत शिक्षकों के साथ अपनी एकजुटता प्रदर्शित करते हुए उनकी न्यायपूर्ण मांगो के साथ खड़ा है। हम बिहार सरकार द्वारा शिक्षकों के दमन की कड़ी आलोचना करते हुए मांग करते हैं कि शिक्षकों की मांगो को जल्द से जल्द पूरा किया जाए। हम देश के शिक्षकों और छात्रों से अपील करते है कि वो इस कठिन समय में बिहार के शिक्षकों के साथ खड़े हों।


क्रांतिकारी अभिवादन सहित
*परिवर्तनकामी छात्र संगठन*
*(पछास)*