गोरखपुर। विगत दिनों मैने लॉक डाउन की त्रासदी झेल रहे गोरखपुर के कुछ क्षेत्रों, (आम बाजार,खजांची चौक, धर्मशाला, खरैय्या पोखरा, गंगा टोला, हरसेवकपुर आदि) का सर्वे किया, खासकर दिहाड़ी मजदूरों, टेम्पो चालकों, ठेला चालकों और उनके परिवारों का (जिनमें बड़ी संख्या घरों में बर्तन, झाड़ू, पोछा, करने वाली हैं)।
साथियों, इसमें काफी हृदय विदारक तथा परेशान करने वाले तथ्य मिले। इस श्रेणी में एक बड़ी संख्या सीमावर्ती जिलों के आप्रवासीयों की है। पुरुषों के रोजगार तो चले ही गए हैं, इन घरेलू महिला कामगारों को भी अगले अनिश्चित समय तक घरों में आने की मनाही है। इन परिस्थितियों में उनके सामने सबसे बड़ी समस्या भर पेट भोजन की है। राज्य प्रशासन, स्थानीय लोग मदद जरूर कर रहे हैं, परंतु कई मजदूरों ने बताया कि जो बना बनाया खाना मिल रहा है, उससे पेट नहीं भरता है। परिवार लेकर रह रहे पड़ोसी जिलों के मजदूरों को इस आधार राशन नहीं मिल रहा की सरकारी राशन कार्ड गोरखपुर का नही है। इन्हें सामाजिक, समुदायिक स्तर पर मदद की सख्त जरूरत है। आगे आया जाय।