*मदद गारों के कारवां से चलती ज़िन्दगी* 
लखनऊ। लाकडाउन खत्म होने का वक्त और आगे बढ़ गया है माननीय प्रधानमंत्री जी ने अपने अभिभाषण में देश की जनता से शान्ति बनाये रखने की अपील की है लाकडाउन का पालन करने के लिये कहा है इसी के साथ ये भी कहा है कि अपने आस पास गरीबों का ख्याल रखें।


प्रधान मंत्री जी की बातें सर आँखो पर हम उनकी बताई हर बात को पूरा करने की कोशिश करेंगे, 3 मई तक अगर ज़रूरी नहीं हुआ तो बाहर नहीं निकलेंगे व्यवसाय बंद होने व आमदनी चौपट होने के बावजूद स्टाफ़ को नहीं निकालेंगे उनकी पूरी तन्खाह देंगे अल्लाह चाहेगा तो आस पास के गरीबों को भूखा भी नहीं रहने देंगे जितना हो सकेगा एक दूसरे की मदद करेंगे।क्योंकि सच में गरीबों के लिये जो भी योजनाएं हैं, कुछ हद तक कारगर हैं पर पर्याप्त नहीं है। जैसे कि गरीबों (ews/ आयुष्मान कार्ड धारकों ) के बैंक खाते में जो पैसे आये हैं 500 ₹ उस पैसे को भी बैंक से निकालना किसी टास्क से कम नहीं है उस 500 ₹ के लिये लाकडाऊन का उलंघन करते हुये लम्बी लम्बी लाइन देखी जा सकती है कयी जगह पर देखने को मिला है कि पैसे निकालने में महिलाओं को बहुत मारा मारी करनी पड़ी और कुछ जगाहों पर तो इन पर पुलिसिया कार्यवाही भी हुयी।


जो राशन इन गरीबों के लिये कोटेदारों के पास आ रहा है तो कयी जगाहों पर इनकी भी ऐसी शिकायतें आ रही हैं जिससे कि गरीबों की दिक्कत को आसानी से समझा जा सकता है,
जिस वजह से तमाम सभ्य लोग थोड़ा सा भी सामान्य लोग और तमाम मध्यम वर्गीय लोग एक दूसरे की दिल से मदद भी कर रहे हैं वरना तो अब तक कॉरोना वायरस से ज़्यादा भुखमरी से मरने वालों की तादात ज़्यादा होती, क्योंकि सरकारी मदद हर लेवल के लोगों तक नहीं पहुँच पा रही है ऐसे में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो हाथ नहीं फ़ैलाना चाह रहे हैं।
लेकिन ये मध्यम वर्गीय लोग भी जो सरकारी नौकर नहीं हैं जिनकी आमदनी पूरी तरह से बंद है अपने ज़मीर की अपने अन्तरात्मा की आवाज़ सुन कर लोगों के यहाँ राशन पहुँचा रहे हैं और अन्य तरीके से मदद कर रहे हैं तो ये कब तक करेंगे  ??


बहरहाल इतनी बातों के बीच कुछ छोटे से सवाल अपने व अपने जैसों के लिये यानि मध्यम वर्गीय दुकानदारों व व्यवसायिक और पत्रकार भाइयों के लिये। 


हम जैसे लोग किसी योजना में नहीं आते हैं 
हम जैसे लोग किसी से कुछ माँग नहीं सकते हैं 
हम जैसों को कहीं से तन्खाह मिलनी नहीं है 
बच्चों की फ़ीस माफ़ नहीं है 
स्टाफ़ को तन्खाह देना ही है 
घर का खर्च चलाना ही है 
बिज़ली का बिल माफ़ नहीं है 
बैंक की इएमआई देनी ही है


बीमारी का माहौल चल ही रहा है अल्लाह ना करे अगर किसी के अंदर ज़रा भी कॉरोना के आसार दिख जायें तो वो किस तरह से समझे या जांच करायें ? क्योंकि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कह दिया है कि इसकी जाँच सिर्फ़ गरीबों के लिये व आयुष्मान कार्ड वालों के लिये मुफ़्त है, यानि के मध्यम वर्गीय लोग इस मामले में भी वन्चित कर दिये गये, अगर वो मर्ज़ छुपाते हैं तो अपराधियों की श्रेणी में आयेंगे वरना तो 4500 ₹ खर्च करके वो जाँच करवायें।


अब ऐसे में इनके लिए क्या??? क्या किसी सरकारी/गैर सरकारी संस्थाओं की नज़र इन पर भी पड़ेगी ? क्या इनके लिये भी कुछ ऐसी योजना बनेगी जो इनके आत्मसम्मान को बरकरार रखते हुये इनको राहत दे सके, ज़्यादा नहीं तो बिज़ली का बिल माफ़ हो जाये, हाउस टैक्स माफ़ हो जाये 
और स्कूल की फ़ीस माफ़ हो जाये। वरना तो आने वाले कल में अगर कोई पूरी तरह से तबाह होगा तो वो मध्यमवर्गीय वर्ग होगा। 



 *परवेज़ अख्तर* की रिपोर्ट