मंगल पांडेय की शहादत ने जलाई स्वतंत्रता की चिंगारी-अंशुमान


उसने साहस जुटाकर चर्बी लगे कारतूस का इस्तेमाल करने से मना कर दिया और जब उस पर दबाव डाला गया, उसकी बंदूक छीनने की कोशिश की गई और वर्दी उतरवाने का आदेश दिया गया, तो बागी बलिया के उ स लाल ने अंग्रेज अफ़सर मेजर ह्यूसन से दुश्मनी मोल ले ली, परिणाम स्वरूप ह्यूशन मारा गया।


बात देश की थी, बात सनातन धर्म परंपरा की थी, बात स्वाभिमान की थी, अकेले ही उसने ब्रिटिश एंपायर को सोचने को मजबूर कर दिया, नाम था *मंगल पांडे*।


विद्रोह की चिंगारी पूरे देश में फैल चुकी थी जगह-जगह सैनिक बगावत करने लगे थे , इसी बीच रास्ते में आए एक और अंग्रेज  अधिकारी लेफ्टिनेंट बॉब को भी मंगल ने मौत के घाट उतार दिया।


इस घटना के बाद अंग्रेज सिपाहियों ने मंगल को गिरफ्तार कर लिया और उन पर कोर्ट मार्शल द्वारा मुकदमा चलाकर आज ही के दिन सन 1857 को फांसी दे दी गई। वैसे तो फैसले के अनुसार फांसी 18 अप्रैल को देनी थी परंतु मंगल की चिंगारी इतनी दूर तक फैली थी कि अंग्रेज सहम गए थे और उन्होंने समय के पूर्व ही फांसी देनी पड़ी।


मंगल के द्वारा  विद्रोह किए जाने के एक महीना बाद ही मेरठ की सैनिक छावनी में भी बगावत के सुर तेज हो गए और यह विद्रोह देखते ही देखते पूरे उत्तर भारत में फैल गया। मंगल पांडे की शहादत की खबर सुनते हैं अंग्रेजों के विरुद्ध जगह-जगह संघर्ष होने लगे और इस प्रकार मंगल पांडे ने अंग्रेजों से भारत को स्वतंत्र कराने का बीज बो दिया।


यह विद्रोह ही बाद में चलकर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहलाया । जिसमें सिर्फ सैनिक ही नहीं, किसान-मजदूर, रजवाड़े व आम जनमानस भी शामिल हुए। इस विद्रोह के बाद से भारत पर राज्य करने का अंग्रेजो का सपना कमजोर हो गया आज शहादत दिवस के अवसर पर ऐसे वीर को नमन है जिसने भारत को आजाद कराने के स्वप्न को यथार्थ में बदलने हेतु अपने प्राणों की आहुति दे दी।


रवीश पाण्डेय की रिपोर्ट
(मंगल पाण्डेय की सहादत दिवस पर विशेष)