प्रकृति को अनदेखा करना हमारे नाश का कारण-अंशुमान


सलेमपुर, देवरिया। ऐसे दौर में जब पूरा विश्व विज्ञान के प्रयोग अनुप्रयोग में लगा हुआ था, प्राकृतिक संसाधनों का अत्याधिक उपयोग प्रकृति की अवमानना करते हुए आगे बढ़ रहा था, तभी चीन के वुहान शहर से निकला एक वायरस कोरोना वायरस पूरे विश्व को झकझोर कर रख देता है।


संपूर्ण संसार की आर्थिक महाशक्तियां धराशाई हो जाती हैं। अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक, चीन से लेकर यूरोप तक सभी इस चीनी वायरस से पीड़ित हैं। विश्व की सर्वश्रेष्ठ स्वास्थ्य सुविधाएं भी इस आपदा के आगे लाचार हैं। सैकड़ों देशों के हजारों  लोगों की जीवन लीला समाप्त हो चुकी है, 14 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हैं। वायरस को लेकर विश्वभर में वैज्ञानिकों व विद्वानों में दो प्रकार के मत हैं और दोनों प्रकृति के विरुद्ध है । पहला मत यह कहता है कि यह वायरस चीन के वुहान शहर के एक सब्जी मार्केट से सर्प या चमगादड़ से फैला है। हमें यह समझना होगा कि प्रकृति चक्र का पालन करना सभी मनुष्यों का धर्म है। सभी का आहार निश्चित है, अगर हम दूसरों के आहार को स्वयं ग्रहण करेंगे तो पहले  सार्स, फिर इबोला और अब कोविड 19 ऐसी आपदा विभिन्न रूपों में आती रहेगी। 


दूसरा मत यह है कि पिछले कुछ वर्षों में चीन व अमेरिका द्वारा अपने प्रयोगशालाओं में जीवाणु और विषाणु  के मध्य छेड़छाड़ कर उनकी मूल प्रकृति में बदलाव कर उन्हें और भी ज्यादा सक्षम व खतरनाक बना रहे हैं इनका उत्पादन तो मानव स्वास्थ्य के हित के बहाने किया जा रहा है लेकिन यह बेकाबू हो गए तो तमाम मुश्किलों का भी सामना करना पड़ सकता है, ऐसा वैज्ञानिकों का मानना है। 


प्रकृति से छेड़छाड़ का जिम्मेदार कौन है? हम सभी को सोचने की आवश्यकता है क्या यह प्रकृति का संदेश है या उसकी चेतावनी? क्या हम प्रकृति को समझ पाए हैं? या हम यह समझ पाए कि हमने प्रकृति के साथ कितने खिलवाड़ किए हैं? यह सवाल हमें स्वयं से करने की आवश्यकता है।
प्रकृति की यह लीला है कि आज इस  वायरस से बचने का कोई कारगर उपाय नहीं है। हालांकि इसके प्रसार को रोकने के लिए *सोशल डिस्टेंसिंग* एक महत्वपूर्ण साधन है। आज लोग घरों के अंदर कैद हैं और आज पशु पक्षी खुली हवा में विचरण कर पा रहे हैं। हवाएं शुद्ध हैं , सांस लेने योग्य हैं । क्या हम इतने लापरवाह हो गए हैं?


स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मार्शल बर्क  ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि हवा और पानी की शुद्धता के  कारण इस वर्ष 50 से 75000 लोगों की मृत्यु कम होगी। अर्थात कोरोना वायरस से अधिक लोग हवा और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की कमी से मरते हैं। प्रदूषण कम करने के लिए विश्व भर की सरकारें विभिन्न प्रकार की योजनाएं लेकर आती हैं, फिर भी उसके परिणाम नगण्य मात्र ही होते हैं। परंतु यह कोरोना वायरस कुछ ही दिनों में नदियों के पानी से लेकर, हमारे आसपास के वातावरण तक को बदल कर रख देता है। शायद प्रकृति हमें सचेत कर रही है, हमें मार्ग दिखा रही है। हमारे पास अभी समय है हमें समझना होगा कि हम प्रकृति का शोषण ना करें। प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग आवश्यकता अनुसार ही करें, उसकी पूर्ति भी करें नहीं तो कोरोना एक उदाहरण हो सकता है और प्रकृति को अनदेखा करना हमें नाश की ओर ले आ सकता है।


-रवीश पाण्डेय की रिपोर्ट