रमज़ान और रमादान



विनोद दुआ साहब (Vinod Dua) ने पाकिस्तान की मशहूर गायिका टीना सानी के हवाले से यह मज़ेदार क़िस्सा लिखा है

“पड़ोसी ज़िया साहब हाथों में बड़ी-बड़ी, सामान से भरी थालियाँ लिए जा रहे थे। आज चाँद रात है, जैसे ही हमारे सामने से गुज़रे हमने कह दिया, ज़िया साहब, “रमज़ान मुबारक” ! झट से रुके, पास बुलाया और सख़्त लहजे में बोले, “आप तो पढ़े-लिखे लगते हैं!” “जी हुज़ूर कुछ तो पढ़ाई की है,” हमने भी सर झुका के जवाब दिया, कहने लगे, “रमादान होता है सही लफ़्ज़, रमज़ान नहीं, अरबी का लफ़्ज़ है अरबी की तरह बोला जाना चाहिए।”


हमारी ग़लती थी सर झुका के मान ली। कहा आप सही कह रहे हैं धिया साहब। - फ़ौरन चौंके - कहने लगे “ये धिया कौन है” मैने कहा आप। कैसे भई मैं तो ज़िया हूँ...मैने कहा जब रमज़ान रमादान हो गया तो फिर ज़िया भी तो धिया हो जाएगा। ये भी तो अरबी का लफ़्ज़ है! ज़्वाद का तलफ़्फ़ुज़ ख़ाली रमादान तक क्यों महदूद हो! 


ख़ैर बात ख़त्म हुई ज़िया साहब जाने लगे तो हमने पीछे से टोक दिया … " कल इफ़्तारी में बकोड़े बनवाइएगा तो हमें भी भेज दीजिएगा...फ़ौरन फड़फड़ा के बोले “ये बकोड़े क्या चीज़ है”...हमने कहा अरबी में “पे” तो होता नहीं तो पकोड़े बकोड़े हुए...पेप्सी भी बेबसी हो गई” एकदम ग़ुस्से में आ गए ...तुम पागल हो गए हो...हमने कहा पागल नहीं बागल बोलिए अरबी में तो बागल ही हुआ...बहुत ग़ुस्से में आ गए… कहने लगे अभी चप्पल उतार के मारूँगा...मैने कहा चप्पल नहीं शब्बल कहिए, अरबी में च भी नहीं होता...और ग़ुस्से में आ गए कहने लगे अबे गधे बाज़ आया। मैंने कहा बाज़ तो मैं आ जाऊँगा मगर गधा नहीं जधा कहिए, अरबी में ग भी नहीं होता...अब उनका पारा सातवें आसमान पर था...’तो आख़िर अरब में होता क्या है?’


कम हम भी नहीं हैं...ज़बान हमारी भी फिसल जाती है। कह दिया - आप जैसे शूतिया।