तेलंगाना सरकार की तरह ही सरकारी कर्मचारियों के वेतन में न्यूनतम 50% कटौती अनिवार्य करें उत्तर प्रदेश सरकार

वर्तमान में कोरोना एवं आर्थिक संकट के मद्देनजर तेलंगाना की सरकार ने बहुत बड़ा एवं कड़ा कदम उठाते हुए राज्य के सभी मंत्रियों, विधायकों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों की सैलरी में 75% तक की कटौती का फैसला लिया है। तेलंगाना सरकार ने नौकरी पाने वालों के साथ-साथ पेंशन पाने वाले अधिकारियों, कर्मचारियों की पेंशन में भी 50% तक की कटौती की है। उन्होंने चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की सैलरी रिटायर्ड चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की पेंशन में भी 10% कटौती का फैसला किया है। यह कटौती 1 अप्रैल से अनिश्चित काल तक के लिए जारी रहेगी।


वर्तमान संकट काल में न्यूनतम से कम वेतन पाने वाले एवं बढ़ती आर्थिक गैर बराबरी के शिकार हुए एवं भारी अभाव में जीने वालों के सहयोग करने का एक साहस पूर्ण प्रयास है, जिसने लोगों में सामाजिक आर्थिक न्याय के प्रति एक उम्मीद जगाई है।


महाराष्ट्र सरकार ने भी इसी प्रकार अपने नेता, नौकरशाह और कर्मचारियों के वेतन से अधिकतम 50% तक की वेतन कटौती की घोषणा की है।केरल सरकार भी अपने सभी कर्मियों के वेतन से अनिवार्य कटौती कर आपदा राहत कोष में जमा कर रही है। इस क्षेत्र में सबसे असंवेदनशील और अमीर परस्त रवैया उत्तर प्रदेश सरकार का है, इस संकट के समय में भी जब अधिकांश लोगों की रोजी-रोटी का संकट खड़ा है और गरीबी रेखा से नीचे जीने वालों के मानवीय जीवन को बनाए रख पाना मुश्किल हो गया है, योगी आदित्यनाथ की सरकार ने सरकारी नौकरी के नाम पर मिलने वाले लग्जरी वेतन भोगियों को संतुष्ट करते हुए उनके वेतन से कोई कटौती न करने का निर्णय लिया है।


ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार ने साबित किया है कि इस कठिन दौर में भी वह आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सिर्फ पुलिसिया डंडे के सिवा कुछ देने के लिए तैयार नहीं है। यह सरकार थोड़े से अमीरजादों के लठैत के रूप में काम करने से बाज नहीं आ रही है।


युवकों को रोजगार एवं मजदूरों को न्यूनतम वेतन देने व दिलाने में कोई रुचि ना लेने वाली यह सरकार बहुत ही शर्मनाक ढंग से थोड़े से कर्मचारियों की तनख्वाह बढ़ाने एवं सातवें वेतन आयोग के अनुरूप वेतन देने में कोई संकोच नहीं करती। कारपोरेट के मजबूत गुंडे के रूप में काम करते हुए इस सरकार ने पहले भी बहुत ही क्रूर एवं शर्मनाक ढंग से अंग्रेजी मीडियम प्राथमिक विद्यालय स्थापित कराए हैं  एवं भारत की परंपरागत न्याय पंचायतों को खत्म कर गरीबों को दरोगा राज के हवाले किया है।


उत्तर प्रदेश सरकार के मुखिया के पास इंसाफ करने का यह एक ऐसा अवसर था जिसमें देश के अन्य संवेदनशील राज्यों और उनके प्रतिनिधियों के तरह ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष IMF की गलत सिफारिश पर आतार्किक रूप से अधिक वेतन पाने वालों की वेतन में कटौती कर न्याय पूर्ण व्यवस्था की ओर आगे बढ़ने  का प्रयास कर सकते थे, जो उन्होंने नहीं किया।


उत्तर प्रदेश में 90% प्राइवेट शिक्षकों को इनके पार्टी के लोगों और उनके रिश्तेदारों के स्कूलों में बेगार करते हुए उनकी दया पर जीना पड़ता है। उनके लिए ना तो इन्होंने पहले कुछ किया और ना ही आज करने के लिए तैयार हैं।


उत्तर प्रदेश सरकार के चरित्र में इस कठिन समय में भी इंसाफ का कोई भाव नहीं दिखता है। अमीरों की बेशर्म पैरोकार के रूप में काम कर रही है उत्तर प्रदेश सरकार, जब कि आज जरूरत है सभी नागरिकों के लिए न्यूनतम आय सुनिश्चित कराने की, संकट के समय में सरकारी कर्मचारियों के नाम पर आतार्किक ढंग से बढ़ाई गई तनख्वाह में तेलंगाना के तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी 50 से 75% तक कटौती की जाए काले धन को जप्त किया जाय, सभी प्राइवेट विद्यालयों एवं अस्पतालों का पूरी तरह तुरंत राष्ट्रीयकरण करना भी आज  आवश्यक हो गया है। और यह कि सभी को सम्मानजनक जीवन जीने लायक धनराशि अनिवार्यतः उपलब्ध कराई जाए।



                        डॉ. चतुरानन ओझा
                समान शिक्षा आंदोलन, उत्तर प्रदेश