भारत के प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष की 163 वी सालगिरह पर सभी को बहुत बहुत शुभकामना व बधाई!

युवाओं में भरना होगा राष्ट्रप्रेम व देशभक्ति की भावना


शहीदों की वीरगाथा से परिचित कराना होगा आने वाली पीढ़ी को


देश की पहली आजादी की लड़ाई मई 1857 ई० में लड़ी गयी।कुछेक इतिहासकार 10 मई तो कुछेक 11 मई को इसकी शुरुआत मानते हैं !


इतिहासकार  लेखक विपिन चंद्र पाल ने अपनी पुस्तक भारत का प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष में इस बात उल्लेख करते हुए लिखा है कि ! मई महीने की 10 तारीख को मेरठ की छावनी से अंग्रेजी सेना के भारतीय सिपाहियों का एक जत्था दिल्ली के लिए कूच कर दिया जो प्रातःकाल 11 तारीख को दिल्ली के लालक़िले पर धावा बोल युद्ध शुरू कर दिया।अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को लालकिले से मुक्त कराकर उनके नेतृत्व में दिल्ली को आजाद करा दिया।जिसका  परिणाम यह हुआ कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में देखते देखते यह विद्रोह जंगल मे लगी आग की तरह चारो ओर फैल गया।
अवध में इसका नेतृत्व बेगम हजरत महल ने किया।तो झांसी में  रानी लक्ष्मी बाई ने किया।कानपुर में नाना साहब जिनके बचपन का नाम धुन्धु पंत था ने किया।बरेली में  तात्या टोपे ने किया।बिहार में इसका नेतृत्व वीर कुंवर सिंह ने किया।इलाहाबाद में लियाकत अली ने किया।


लेकिन राष्ट्रप्रेम व राष्ट्रीय एकता के अभाव के चलते यह विद्रोह असफलता को प्राप्त हुआ।


आज प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष की 163 वी सालगिरह पर हम सभी शुभकामना व्यक्त करते हुए राष्ट्रीय एकता व राष्ट्र प्रेम बनाये रखने की सभी से अपेक्षा करते हैं।देश के प्रति समर्पण,देश के प्रति त्याग व बलिदान हो जाने की भावना सभी देशवासियों में विकसित होना जरूरी है।इसके लिये हमें विशेषकर युवा वर्ग में शहीद हुए वीरों की गाथा बताने व सुनाने की जरूरत है जिससे उनके अंदर भी देशभक्ति व देशप्रेम की भावना जागृत हो सके।


आज हमारे समाज मे कुछ ऐसे कुरीतियों ने जन्म ले लिया है जिसके चलते युवा वर्ग अपने रास्ते से भटकता जा रहा है।


आने वाली पीढियां देश के लिए सम्पूर्ण समर्पित कर देने वाले शहीदों के कारनामो से परिचित न होकर दूसरे दिशा में भटकती नजर आ रही है।जरूरत है इन शहीदों के बारे में आने वाली पीढ़ियों को बताने की जिससे उनके अंदर देशभक्ति व राष्ट्रप्रेम की भावना को जगाया जा सके।


महापुरुषों के प्रति सम्मान का भाव जगाने के लिए सरकार को भी चाहिए कि पाठ्यक्रमो में उनके कारनामे जोड़े जाय और पढ़ाया जाय।लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि अनेक राज्यो की सरकारें इन महान क्रान्तिकारियो से संबंधित पाठों को पाठ्यक्रम से बाहर कर रही हैं।


सांकृत्यायन रवीश पाण्डेय