भारतीय लोकतंत्र में महिलाओं की भूमिका : मधु मिश्रा



21 वीं सदी शुरुआत से हीमहिलाओं कि रही है. इन सालों में महिलाओं का भारत कि आर्थिक व्यस्था में योगदान बढ़ा है इसका ही परिणाम है कि आज भारत कि महिलाएं राजनीति, कारोबार, कला तथा नौकरियों में पहुँच कर नये आयाम गढ़ रही हैं. भूमण्डलीकृत विश्व में भारत की नारी ने अपनी एक नितांत सम्मानजनक जगह कायम कर ली है. आंकड़े दर्शाते हैं कि प्रतिवर्ष कुल परीक्षार्थियों में 50 प्रतिशत महिलाऐं डॉक्टरी की परीक्षा उत्तीर्ण करती हैं स्वतंत्रता के बाद लगभग 12 महिलाएएं विभिन्न राज्यों की मुख्यमंत्री बन चुकी हैं. भारत के अग्रणी सॉफ्टवेयर उद्योग में 21 प्रतिशत पेशेवर महिलाऐं हैं. फौज, राजनीति, खेल, पायलट और उद्यमी सभी क्षेत्रों में जहाँ वर्षों पहले तक महिलाओं के होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, वहां सिर्फ़ महिलाओं ने स्वयं को स्थापित ही नहीं किया है बल्कि वहां सफल भी हो रहीं हैं.


विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनाव के नतीजे अभी हाल ही में हम सभी के सामने आये हैं, इन नतीजों ने भारतीय राजनीति को एक नया आयाम प्रदान किया है कि एक बार फिर से प्रधानमंत्री मोदी की सत्ता में एक स्थिर सरकार के रूप में वापसी हुई है. ऐसा भारत के पहले प्रधानमंत्री नेहरू एवं इंदिरा गाँधी के बाद हुआ है. परंतु इस चुनाव का यदि हम ललैंगिक द्रष्टिकोण से विश्लेषण करें तो पाएंगे कि, देश कि आधी आबादी कि इस चुनावी समर में मुख्य़ भूमिका रही है.उसका ही परिणाम है कि इस आम चुनाव के नतीजे में देश की महिला मतदाताओं ने सिर्फ़ अपनी उपस्थिति ही नहीं दर्ज कराई है, बल्कि इस बार भारतीय लोकतंत्र में पहली बार ऐसा हुआ है कि कि 78 महिलाए सांसदद के रूप में निर्वाचित होकर आईं हैं. वहीं पुरुष सांसदों की संख्या 2014 में 462 थी जो 2019 में घटकर 446 रह गई है इससे उनकी संख्या में करीब 3% की कमी आई है. इस बार आम चुनाव के लिए खड़े हुए 8,000 उम्मीदवारों में से महिला उम्मीदवारों की संख्या 10% से भी कम थी परन्तु संसद में जीतकर पहुंचने वाली महिलाओं का 14 प्रतिशत है. यह भारत की चुनावी राजनीति में आ रहे सकारात्मक बदलाव का ही संकेत है कि ये चुनाव महिला उम्मीदवारों से जुड़े कई राजनैतिक पूर्वाग्रहों को दूर करने में मददगार साबित हो सकता है. साथ ही महिलाओं का राजनीतिक सशक्तीकरण करने भी कारगर सिद्ध होगा.