*धरती के भगवान.....*


छप्पन भोग बनाते हैं भगवान का
पर दो रोटी अपने माँ - बाप के लिए नही!


रेशमी गोटेदार वस्त्र पहनाते भगवान को
पर बस कुछ वस्त्र माँ - बाप के लिए नही!


बहुमूल्य चढ़ावा चढ़ाते हैं भगवान को
पर बीमारी में दवा माँ - बाप के लिए नही!


सुन्दर मन्दिर बनाते हैं भगवान का
पर एक कमरा निज माँ - बाप के लिए नही!


गीत, भजन बहुत खुश होकर गाते हैं
पर दो शब्द प्यार भरे माँ - बाप के लिए नही!


सैर - सपाटे में तो वक्त गुजार देते हैं
पर दो पल का वक्त माँ - बाप के लिए नही!


मंदिर में रखी मूर्ति को भगवान मानते हैं
पर जन्मदाता भगवान माँ-बाप को मानते नही!


परम सत्य इतिहास खुदको दोहराता है
अगर इसपे यकीं है तो निष्ठुर हृदय बनना नही!


सदा हृदय की सुनना, सेवा-सत्कार करना
ये शुभ अवसर फिर कभी दोबारा मिलते नही!



रचनाकार-मंजू श्रीवास्तव
पता- कानपुर (उत्तर प्रदेश)