गोरखपुर विश्वविद्यालय के स्थापना इतिहास को बदलना दुर्भाग्यपूर्ण : मधुसूदन


वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं गोरखपुर संसदीय क्षेत्र के पूर्व प्रत्याशी मधसूसदन त्रिपाठी ने बयान जारी कर कहा कि
गोरखपुर विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस पर मुख्यमंत्री श्री आदित्यनाथ जी का ट्वीट आया था, जिसमें उन्होंने विश्वविद्यालय को "गोरक्षपीठ के ब्रह्मलीन महंत श्री दिग्विजयनाथ जी के अद्वितीय शैक्षिक क्रांति का प्रतिफल" बताया है!! 
   
यह घोर आश्चर्यजनक है, क्योंकि विश्वविद्यालय की स्थापना में शहर के कई संभ्रात लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह सर्वविदित है कि गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना में अग्रगण्य भूमिका और उसकी रूपरेखा तैयार करने का श्रेय श्री सुरति नारायण मणि त्रिपाठी जी को जाता है और वही विश्वविद्यालय की स्थापना कार्यकारी समिति के अध्यक्ष भी थे, जबकि महंत दिग्विजय नाथ जी एवं सरदार मजीठिया जी उपाध्यक्ष की भूमिका में थे। 


सेण्ट एण्ड्रयूज कालेज के तत्कालीन प्रचार्य डॉ. सी.जे. चाको की पहल पर सन 22 सितंबर 1948 में उनके आवास पर शहर के प्रमुख व्यक्तियों की बैठक हुई और विश्वविद्यालय की स्थापना का स्वप्न संकल्प में परिणत हुआ था और स्थापना समिति का गठन हुआ था, जिसके अध्यक्ष के रूप में पंडित सुरति नारायण मणि त्रिपाठी ने अपना भगीरथ प्रयास शुरू किया और समिति के सदस्य पंडित प्रसिद्ध नारायण मिश्र, पं. हरिहर प्रसाद दुबे, श्री बब्बन प्रसाद मिश्र, श्री केदार नाथ लाहिड़ी, राय राजेश्वरी प्रसाद, खान बहादुर मो. जकी, श्री रायबहादुर मधुसूदन दास, रायबहादुर रामनारायण लाल, श्री महादेव प्रसाद, श्री परमेश्वरी दयाल, श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार के साथ मिलकर विश्वविद्यालय के स्वप्न को साकार किया। इस कार्य मे गोरखपुर के आसपास के कई स्टेट एवं शहर के रईसों ने बड़ी मदद की। तत्कालीन मुख्यमंत्री पंण्डित गोविंद बल्लभ पंत के साथ अपने संबंधों के बलपर उन्होंने विश्वविद्यालय का शिलान्यास 1 मई 1950 कराया। 


बाद में चलकर कुछ शर्तों के साथ सेंट एंड्रयूज कॉलेज के एल. टी. कॉलेज एवं महाराणा प्रताप एजुकेशनल ट्रस्ट के महाविद्यालय का शिक्षक कर्मचारी सहित विश्वविद्यालय में विलय 1956 में हुआ। आज उसी महाराणा प्रताप कॉलेज के भूमि पर गुरु गोरक्षनाथ शोध पीठ का भवन बनाया जा रहा है, जो वर्तमान में दिग्विजय नाथ पीजी कॉलेज के बगल में स्थित है।


ऐसे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बयान आम जनमानस को क्षुब्ध करने वाला तथ्य हीन है। मनमाने तरीके से विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय सभी को मिलना चाहिए। इसके असली संस्थापक पंडित सुरति नारायण मणि त्रिपाठी की बंद पड़ी मूर्ति को विश्वविद्यालय परिसर में स्थापित करवाकर मुख्यमंत्री जी को बड़े हृदय का परिचय देते हुए सत्य का सम्मान करना चाहिए।