जवाहरलाल नेहरू की जेल यात्राओं का विवरण : विश्‍वामित्र पाण्डेय

पुण्यतिथि पर विशेष :-


छपर बिहार सोशल मीडिया पर यह बात भी गाहे बगाहे कही जाती है कि जवाहरलाल नेहरू को किसी नियमित जेल में नहीं बल्कि आरामदायक डाक बंगले में रखा जाता था । उन्हें ब्रिटिश सरकार विशेष सुविधा देती थी । यह बात सच नही है।  नेहरू विरोधियों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे नेहरू के बारे में कोई भी अध्ययन करने से कतराते हैं । उन्हें या तो नेहरू के लेखन और विचारों से भय लगता है कि कहीं उनका हृदय परिवर्तन न हो जाय या तो वे नेहरू के प्रति इतने अधिक घृणा भाव से आवेशित हैं कि वे उनके लिखी किताबों के पन्ने पलटना भी नहीं चाहते । 


वे यह छोटी सी बात समझ नहीं पाते हैं कि किसी के भी विचार का विरोध करने के पहले उसके विचारों का अध्ययन करना ज़रूरी है । नेहरू अपने जीवन मे कुल 20 बार अलग अलग जेलों में रहे। कुल अवधि साढ़े नौ साल के लगभग है । यह सूचना नेहरू स्मारक संग्रहालय तीन मूर्ति भवन जो उनका, उनकी मृत्यु तक सरकारी आवास रहा, से ली गयी है और गूगल पर भी उपलब्ध है । 


नेहरू एक राजनैतिक बंदी थे। जेल मैनुअल के अनुसार राजनीतिक और ग्रेजुएट बंदियों को लिखने पढ़ने और अन्य सुविधाएं देने का प्राविधान है । जो वे लिखते थे उसे जेल और सीआईडी विभाग के लोगों की नज़र में भी था। नेहरू ने अपनी सारी पुस्तकें जेलों में ही लिखी। आज भी जेल में कोई कैदी लिखना पढ़ना चाहे तो उसे सुविधाएं और पुस्तके उपलब्ध करायीं जाती है । 


जेल यात्रा का विवरण प्रस्तुत है ।



● 6 दिसंबर 1921 से 3 मार्च 1922, लखनऊ जिला जेल, 88 दिन ।


● 11 मई 1922 से 20 मई 1922 , इलाहाबाद जिला जेल, 10 दिन ।


● 21 मई 1922 से 31 जनवरी 1923, लखनऊ जिला जेल, 256 दिन ।


● 22 सितंबर 1923 से 4 अक्टूबर 1923, नाभा जेल, 12 दिन ।


● 14 अप्रैल 1930 से 11 अक्तूबर 1930, नैनी सेंट्रल जेल, इलाहाबाद, 181 दिन ।


● 19 अक्टूबर, 1930 से 26 जनवरी, 1931, नैनी सेंट्रल जेल इलाहाबाद, 100 दिन ।


● 26 दिसंबर 1931 से 5 फरवरी, 1932, नैनी सेंट्रल जेल, इलाहाबाद, 42 दिन ।


● 6 फरवरी, 1932 से 6 जून, 1932, बरेली जिला जेल, 122 दिन ।


● 6 जून 1932 से 23 अगस्त 1933, देहरादून जेल, 443 दिन ।


● 24 अगस्त, 1933 से 30 अगस्त, 1933, नैनी सेंट्रल जेल, इलाहाबाद, 7 दिन ।


● 12 फरवरी 1934 से 7 मई 1934, अलीपुर सेंट्रल जेल कलकत्ता, 85 दिन ।


● 8 मई 1934 से 11 अगस्त 1934, देहरादून जेल, 96 दिन ।


● 23 अगस्त, 1934 से 27 अगस्त, 1934, नैनी सेंट्रल जेल, इलाहाबाद, 66 दिन ।


● 28 अक्टूबर, 1934 से 3 सितंबर, 1935, अल्मोड़ा जेल, 311 दिन ।


● 31 अक्टूबर 1940 से 16 नवम्बर 1940, गोरखपुर जेल, 17 दिन ।


● 17 नवम्बर, 1940 से 28 फरवरी, 1941, देहरादून जेल, 104 दिन ।


● 1 मार्च 1941 से 3 दिसंबर 1941, लखनऊ जिला जेल, 49 दिन ।


● 19 अप्रैल 1941 से 3 दिसंबर, 1941, देहरादून जेल, 229 दिन ।


● 9 अगस्त, 1942 से 28 मार्च, 1945, अहमदनगर किला जेल, 963 दिन ।


● 30 मार्च, 1945 से 9 जून, 1945, बरेली सेंट्रल जेल, 72 दिन ।


इस प्रकार जो लोग यह बराबर दुर्भावना वश यह दुष्प्रचार करते रहते हैं कि जेल , नेहरू के लिए आरामदायक गेस्ट हाउस था , उन्हें यह समझ लेना चाहिये कि वे एक भी दिन के लिये किसी गेस्ट हाउस में नहीं गए । उन्होंने जेल यात्रा का समय पढ़ने, किताबें लिखने आदि में उपयोग किया । एक भी याचिका या प्रार्थना पत्र उन्होंने खुद को छोड़ने के लिये कभी नहीँ दिया । सरकार उन्हें अपनी ज़रूरत के अनुसार, वार्ता के लिये ही छोड़ती रहती थी। लखनऊ जेल में जिस कोठरी में वे बंद थे उसे एक स्मारक के रूप में बदल दिया गया था। पर जब उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार आयी तो जेल को आलमबाग से शहर के बाहर स्थानांतरित किया गया तो वह जेल पूरी की पूरी तोड़ दी गयी। उनका वह कमरा जो, नैनी जेल में था आज भी सुरक्षित रखा गया है । 


अपनी भारतीयता पर ज़ोर देने वाले नेहरू में उस हिन्दू प्रभामंडल की छवि कभी नहीं उभरी, जो गाँधी के व्यक्तित्व का अंग थी। अपने आधुनिक राजनीतिक और आर्थिक विचारों के कारण, वह भारत के युवा बुद्धिजीवियों को, अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ गाँधी के अहिंसक आन्दोलन की ओर आकर्षित करने में और स्वतन्त्रता के बाद उन्हें अपने आसपास, बनाए रखने में सफल रहे। पश्चिम में पले-बढ़े होने और स्वतन्त्रता के पहले यूरोपीय यात्राओं के कारण उनके सोचने का ढंग पश्चिमी साँचे में ढल चुका था। 17 वर्षों तक सत्ता में रहने के दौरान उन्होंने लोकतांत्रिक समाजवाद को …