मध्‍यम वर्ग का वर्तमान यथार्थ : डा राजेश मिश्रा


देश के 95 फ़ीसदी पत्रकार 15 से 50 हज़ार रुपए महीने के बीच वेतन पाते हैं। इनमें भी 90 फ़ीसदी वो हैं, जिनको इस वेतन के अतिरिक्त कोई आमदनी नहीं। कुल पाँच फ़ीसदी ही लाख के ऊपर सैलरी ड्रॉ करते होंगे। इन 05 में से दो फ़ीसदी करोड़ के ऊपर होंगे। इन्हें आप गोदी मीडिया के पत्रकार कह सकते हो।जो अपनी सुविधा से या तो सरकार की गोद में बैठे हैं, या विपक्ष की। ये अपने-अपने आका के इशारे पर ख़बरें लिखते हैं। लेकिन बदनाम 95 फ़ीसदी वाले भी हैं। जबकि उन बेचारों को लोकल कारपोरेटर भी नहीं जानता होगा। यही हाल मध्य वर्ग का है। यहाँ भी 95 फ़ीसदी बस 20000 से एक लाख रुपए प्रति मास पाने वाला वर्ग है। मां-बाप की या ससुराल वालों की कृपा से कोई न कोई दुपहिया अथवा चौपहिया वाहन इनके पास है। बाक़ी प्लास्टिक कार्ड की मदद से ये अपनी शान-शौक़त बढ़ा लेते हैं। अब लॉक डाउन के चलते यह वर्ग भुखमरी की कगार पर आ पहुँचा है। लेकिन इनके बीच जो दो प्रतिशत दलाल वर्ग है, वह इनकी पीड़ा पर आंसू नहीं बहाता। न सरकार अथवा विरोधी दलों को बोलने को उकसाता है। वह बस प्रवासी मज़दूरों की कथा बाँचने में व्यस्त है। इससे एक गरीब के हमदर्द की छवि बनती है और अपने काले कारनामे ढक जाते हैं। मध्य वर्ग को अपने बीच के दलालों को पहचानना चाहिए।


साभार शम्भूनाथ शुक्ल