"प्रवासी मजदूर और इंसानी गिद्दो की सियासत ... विश्‍वामित्र पाण्डेय


"गिद्ध और छोटी बच्ची।"
 


ये तस्वीर इसी शीर्षक से न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी। साल था 1993, जगह थी सूडान। फोटोग्राफर को पुलित्ज़र अवार्ड मिला। पर चार महीने बाद उसने आत्महत्या कर ली। पता है आपको आत्म हत्या का कारण क्या था ?
दरअसल यह एक दर्दनाक तस्वीर थी जिसमें एक गिद्ध एक भूखी से तड़फती बच्ची के मरने का इंतजार कर रहा था।
 फोटोग्राफर ने यह मार्मिक तस्वीर खींची जो बहुत बड़ी खबर बनकर छपी थी। सबसे प्रतिष्ठित सम्मान मिलने के बाद वह फोटोग्राफर बहुत खुश था, लेकिन 4 महीने बाद उसके पास एक फोन आया, एक पाठक ने पूछा कि आखिर उस बच्चे का क्या हुआ ?


उसको गिद्ध ने खा लिया ?


क्या वह मर गया ?


फोटोग्राफर ने जवाब दिया कि मुझे नहीं पता, मैं यह तस्वीर खींच कर चला गया। जिस पर पाठक ने उस फोटोग्राफर को कहा कि आपको पता है उस दिन इस बच्चे के पास एक गिद्ध नहीं बल्कि दो गिद्ध थे ? 
पहला गिद्ध जो उस भूखी बच्ची के मरने का इंतजार कर रहा था, ताकि उसको खा कर भूख मिटाए।
दूसरा वह गिद्ध था जिसने इस बच्चे के दु:ख को भुनाया और दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित अवार्ड जीता।
आपने आखिर उसे बचाने का प्रयास क्यों नहीं किया ?
इन सवालों के बाद उस फोटोग्राफर ने आत्महत्या कर ली।
यदि कोई भी प्रवासी मजदूरों के तस्वीरों को शेयर कर राजनीति कर रहे हैं और उनके लिए कुछ कर नही रहे तो यकीन मानिए वह भी एक ऐसे ही गिद्ध है जो इस मौके को भुना रहे है।
 हाँ आप उन मजदूरों के भोजन,पानी,चप्पल, गमछा,साधन, वाहन की व्यवस्था में जुटे हैं और फोटो डाल रहे हैं तो आपके सेवाकार्य का नतमस्तक भाव से आभार। 


दर्द को बांटा जाता है, भुनाया नही जाता।
दर्द बांटने वाले देवता कहलाते हैं, दर्द भुनाने वाले गिद्ध!