शिक्षक और ब्यापारी : धीरेन्द्र प्रताप सिह

# एक बड़े  *उद्योगपति* शिक्षा संस्थानों के *शिक्षकों* को संबोधित कर रहे थे-  "देखिए! बुरा मत मानिए !  लेकिन जिस तरह से आप काम करते हैं;  जिस तरह से आपके संस्थान चलते हैं यदि मैं ऐसा करता तो अब तक मेरा बिजनेस डूब चुका होता ।"
चेहरे पर *सफलता का दर्प* साफ दिखाई दे रहा था !

"समझिए ! आपको बदलना होगा;  आपके राजकीय संस्थानों को बदलना होगा; आप लोग आउटडेटेड पैटर्न पर चल रहे हैं;  और सबसे बड़ी समस्या आप शिक्षक स्वयं हैं, जो किसी भी परिवर्तन के विरोध में रहते हैं  !"
"हमसे सीखिए ! बिजनेस चलाना है तो लगातार सुधार करना होता है किसी तरह की चूक की कोई गुंजाइश नहीं !"

*प्योर अंग्रेजी में  चला उनका भाषण समाप्त हुआ... ..*

तो प्रश्न पूछने के लिए एक *शिक्षिका* का हाथ खड़ा था..!

"सर ! आप दुनिया की सबसे अच्छी कॉफी बनाने वाली कंपनी के मालिक हैं । 
एक *जिज्ञासा* थी  कि आप कॉफी के कैसे बीज खरीदते हैं..? "

*उद्योगपति* का गर्व भरा ज़वाब था-  *"एकदम सुपर प्रीमियम!* कोई *समझौता* नहीं..!"

शिक्षिका ने फिर पूछा:-
"अच्छा मान लीजिए आपके पास जो माल भेजा जाए उसमें कॉफी के बीज *घटिया* क्वालिटी के हों तो..??"

*उद्योगपति:-*
" सवाल ही नहीं ! हम उसे  तुरंत वापस भेज देंगे; वेंडर कंपनी को ज़वाब देना पड़ेगा;  हम उससे अपना *क़रार रद्द कर सकते हैं !*
कॉफी के बीज के चयन के हमारे *बहुत सख्त मापदंड* है  इसी कारण  हमारी कॉफी की प्रसिद्धि है ! "आत्मविश्वास से भरे उद्योगपति का लगभग स्वचालित उत्तर था !

*शिक्षिका:-*
"अच्छा है ! अब हमें यूँ समझिए कि *हमारे पास रंग-स्वाद-और गुण में अत्यधिक विभिन्नता के बीज आते हैं लेकिन हम अपने कॉफी के बीज वापस नहीं भेजते ! "*

"हमारे यहां सब तरह के बच्चे आते है; *अमीर-गरीब, होशियार-कमजोर,  गाँव के-शहर के,  चप्पल वाले-जूते वाले,  हिंदी माध्यम के-अंग्रेजी माध्यम के,  शांत- बिगड़ैल...सब तरह के  !*
हम उनके *अवगुण* देखकर उनको निकाल नहीं देते !
*सबको लेते हैं ;*
*सबको पढ़ाते हैं;*
*सबको बनाते हैं.. !"*

*"..... क्योंकि सर ! 
*हम व्यापारी नहीं,  शिक्षक हैं।