आजकल हर शख़्स बेज़ान सा,
ठंडी पड़ गई ख़ून की रवानी!
साजिश़ें रचने में है पड़ा हुआ,
आँखों का तो मर गया है पानी!
नफ़रतों का दौर है चला ऐसा,
इंसान भुला रहा रिश्ते इंसानी!
इंसा मार करके निज आत्मा को,
बस जीवन जी रहा है बेईमानी!
लिखनी थी निज गौरव - गाथा,
वो लिख रहा पतन की कहानी!
ऐ भटके लोगों जाग जाओ जरा,
तुम याद करो वीरों की कुर्बानी!
यूं ही ना गवांओ जीवन व्यर्थ में,
कुछ तुम भी बनों स्वाभिमानी!
नाम अमर कर दो तुम अपना,
दुनियाँ रहे सदा तुम्हारी दीवानी!
मंजू श्रीवास्तव
कानपुर (उत्तर प्रदेश)