जेष्ट की तपन से जला ये तन
आषाढ़ की बूदें जलाये मन
मैं प्रेमी से बतला दूं गी
बस ! सावन को आ जानें दो,
इन्द्र -धनुष आसमान बनाये
काले बादल का दुपट्टा लगाये
जुल्फें मैं बिखरा दूंगी
बस ! सावन को आ जानें दो
पुरवइया जब तेज बहाए
जलधि में हलचल उठ आये
अद्भूत रंग दिखा दूंगी
बस !सावन को आ जानें दो,
नभ में बक-पक्ति दिखायें
मानो विजय ध्वज फहरायें
दुन्दभि मैं बजा दूंगी
बस !सावन को आ जानें दो,
धरती पर हरियाली छायी
मानों नवेली दुलहन आयी
घुंघट मैं हटा दूंगी
बस! सावन को आ जानें दो,
दिनेश प्रेमी