# बस सावन को आ जानें दो,,,#

जेष्ट की तपन से जला ये तन
आषाढ़  की बूदें  जलाये  मन
 मैं प्रेमी से बतला दूं गी              
बस ! सावन को आ जानें दो,
इन्द्र -धनुष   आसमान  बनाये
काले बादल का दुपट्टा लगाये
जुल्फें मैं बिखरा दूंगी
बस ! सावन को आ जानें दो
पुरवइया  जब  तेज  बहाए
जलधि में हलचल उठ आये
अद्भूत रंग दिखा दूंगी
बस !सावन को आ जानें दो,
नभ में बक-पक्ति दिखायें
मानो विजय ध्वज फहरायें
दुन्दभि मैं बजा दूंगी
बस !सावन को आ जानें दो,
धरती  पर  हरियाली  छायी
मानों  नवेली  दुलहन आयी
घुंघट मैं हटा दूंगी
बस! सावन को आ जानें दो,



दिनेश प्रेमी