*भगवत कृपा होती तो मिलते सद्ज्ञानी पुरुष*

*एक भंवरा हर रोज फूलों के एक बाग के पास से गुजरता है वहा एक गन्दा नाला बहता है और उस नाले में एक कीड़ा रहता हैं*
        *एक दिन उस भँवरे की नजर कीड़े पे पड़ी और उ सने सोचा ये कीड़ा कैसे इस नाले में रहता है।*
        *भँवरे ने कीड़े से पूछा तुम इस गन्दी जगह में कैसे रहते हो।कीड़ा बोला ये मेरा घर है।भँवरे ने कीड़े से कहा चलो मैं तुम्हे जन्नत की सैर करवाता हूं।*
         *तुम मे्रे साथ चलो और मुझ से दोस्ती कर लो।भँवरे ने कहा मैं कल आऊंगा तब तुम मेरे साथ चलना।अगले दिन भँवरा कीड़े को अपने कंधे पर बिठाकर बाग में ले जाता है और कीड़े को एक फूल पर बिठाकर खुद फूलो का रस चूसने चला जाता है।और शाम को कीड़े को ले जाना भूल जाता है।जिस फूल में कीड़ा बैठा था वो फूल शाम को बंद हो जाता हैं।*
       *तो कीड़ा भी उसी में बंद हो जाता है।अगले दिन माली फूल तोड़ता है और फूलो की माला बना कर बिहारी जी के मंदिर भेज देता हैं।*
      *वही माला बिहारी जी के गले मे पहना दी गयी और पुरे दिन के बाद माला यमुना में प्रवाहित कर दी गयी और वो कीड़ा ये सब देख रहा है।*
       *कीड़ा कहता है वाह रे भँवरे तेरी दोस्ती ने मुझे भगवान का स्पर्श करवा दिया और अंतिम समय यमुना जी मे प्रवाहित करवा दिया*
          *ये भंवरा और कोई नही जीवन मे मिला कोई सत्संगी पुरुष है जो हमे इस भव बन्धन के सागर से दूर बहुत दूर ले जाने में सहायता करता है और ये सत्संगी मित्र भगवान श्री कृष्ण की कृपा से ही मिलता है।*



 लेखिका-लता दुबे