जुलाई में कहर बरपाएगा कोरोना अभी तो बस शुरू हुआ है : डाॅ. पी के श्रीवास्तव


कोरोना का कहर अभी तक सबसे ज्यादा अमेरिका पर ही टूटा था. लेकिन अब भारत में जिस तेजी से कोरोना मरीजों की तादाद बढ़ रही है, उसे देखते हुए जानकारों का मानना है कि जुलाई तक कोरोना के मामलों में भारत, अमेरिका से भी आगे निकल जाएगा. बस कुछ हफ्ते पहले तक कोरोना पॉजिटिव केस के मामलों में भारत की गिनती तीस देशों में थी. मगर अब भारत उन सात देशों में शामिल हो गया है, जहां कोरोना के सबसे ज्यादा केस हैं. अंदेशा ये जताया जा रहा है कि जून-जुलाई भारत के लिए सबसे नाजुक हैं.


पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के मुताबिक देश में लॉकडाउन को ना बढ़ाना मुश्किल पैदा कर सकता है. तो क्या भारत ने लॉकडाउन ना बढ़ाने का फैसला कर मुसीबत को मोल ले लिया है? हालांकि वैज्ञानिकों और डॉक्टरों में इस बात की भी बहस छिड़ी है कि भारत में कोरोना का पीक कब आएगा? जानकारों के मुताबिक किसी भी संक्रमण का पीक तब आता है. जब संक्रमण के मामले उच्चतम स्तर पर पहुंच जाते हैं. और इसके बाद संक्रमण की रफ्तार कम होने लगती हैं. जैसा कि चीन, ईरान, इटली, स्पेन और जर्मनी में हुआ. भारत में कोरोना का पीक जुलाई july की शुरुआत या मध्य में आ सकता. जबकि डब्लूएचओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि भारत में जुलाई के आखिर में कोरोना वायरस के मामले कम होना शुरु होंगे. घुमा-फिरा कर बात यही है कि जुलाई भारत के लिए कोरोना के मामले में निर्णायक साबित होने वाला है.


वैसे खुद WHO की नज़र भी भारत पर है. मगर कोई भी तार्किक तौर पर ये अंदाज़ा नहीं लगा पा रहा है कि भारत में कोरोना अपनी पीक पर कब पहुंचेगा. इसे लेकर कई तरह की थ्योरीज़ सामने आ रही हैं. भारत में पीक की स्थिति को लेकर भ्रम इसलिए है क्योंकि अब तक भारत में कोरोना पॉज़िटिव मामलों के जो आंकड़े आ रहे हैं. वो कम टेस्टिंग की वजह से पूरी तरह सही नहीं कहे जा सकते. अगर टेस्टिंग ज्यादा हुई तो आंकड़े बढ़ते जाएंगे.


मार्च 2019 तक के आंकड़ों के मुताबिक भारत के ग्रामीण इलाकों में सिर्फ 16 हज़ार 613 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. इनमें से सिर्फ 6 हजार 733 स्वास्थ्य केंद्र ऐसे हैं जिनका संचालन दिन रात यानी 24 घंटे होता है. इनमें से भी सिर्फ 12 हजार 760 स्वास्थ्य केंद्र ऐसे हैं, जहां 4 या उससे ज्यादा बेड्स उपलब्ध हैं. ग्रामीण भारत के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की हालत तो और गंभीर है. ग्रामीण भारत में सिर्फ 5 हज़ार 335 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. मई तक के आंकड़ों के मुताबिक भारत में कोरोना वायरस के कुल मामलों में ग्रामीण जिलों की हिस्सेदारी करीब 25 फीसदी है.


नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज के डॉक्टरों के मुताबिक जून के आखिर और जुलाई की शुरुआत में भारत कम्यूनिटी ट्रांसमिशन यानी सामुदायिक संक्रमण के दौर में चला जाएगा. और डराने वाली बात ये है कि ऐसे में इस साल दिसंबर तक भारत की आधी आबादी कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुकी होगी. यानी करीब 67 करोड़ भारतीयों को साल के अंत तक कोरोना वायरस का संक्रमण हो चुका होगा. हालांकि अच्छी बात ये होगी कि इनमें से 90 प्रतिशत लोगों को ये पता भी नहीं चलगा कि उन्हें कोरोना वायरस का संक्रमण हो चुका है. क्योंकि ज्यादातर लोगों में इस वायरस के लक्षण दिखाई ही नहीं देते और सिर्फ 5 प्रतिशत लोगों को ही गंभीर स्थिति में अस्पताल में भर्ती कराया जाता है.


तो क्या कहीं भारत ने लॉकडाउन हटाने में जल्दबाज़ी तो नहीं कर दी. ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित पीटर चार्ल्स डोहर्टी के मुताबिक. भारत जैसे घनी आबादी वाले देशों में लॉकडाउन में ढील देना खतरनाक फैसला है. और इस वायरस से निपटना सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है. क्योंकि संक्रमण के मामले और तेज़ी से बढ़ेंगे. हालांकि डॉ. डोहर्टी ये भी मानते हैं कि ये सिर्फ विज्ञान का मामला नहीं है. लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था भी जुड़ी हुई है. इसलिए इसे खोला जाना तो ज़रूरी है, मगर एक साथ नहीं बल्कि चरणों में. लॉकडाउन खोलने का फैसला ठीक वैसे ही चरण दर चरण होना चाहिए जैसे दुनिया के दूसरे देशों में हुआ. मसलन स्पेन ने अपने यहां 4 चरणों में लॉकडाउन खोलने का फैसला किया और हर फेज़ में यहां धीरे धीरे चीज़ों को खोला गया.


मगर सवाल ये है कि अगर भारत में 67 करोड़ लोगों में से 5 फीसदी भी कोरोना से गंभीर रूप से बीमार पड़ गए तो ये आंकड़ा 3 करोड़ 35 लाख होगा. और अगर इन सब लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराना पड़ा. तो क्या भारत की स्वास्थ्य सुविधाएं इसके लिए तैयार हैं? भारत में कोरोना मरीजों के इलाज के लिए फिलहाल अस्पतालों में 1 लाख तीस हजार बेड्स हैं. लेकिन आने वाले दिनों में जैसे-जैसे गंभीर रूप से बीमार मरीजों की तादाद बढ़ेगी अस्पताल के बिस्तर कम पड़ने लगेंगे और कई राज्यों में तो ऐसा होना शुरू भी हो गया है. छोटे शहरों और गांवों का हाल तो और भी बुरा है.


अगर इसी आंकड़े को भविष्य का आधार मान लिया जाए. तो भविष्य में जिन साढ़े तीन करोड़ लोगों के गंभीर रूप से बीमार होने की आशंका है. उनमें से करीब 1 करोड़ लोग ग्रामीण भारत से होंगे. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आने वाले दिनों में ग्रामीण इलाके कोरोना वायरस का नया हॉट स्पॉट बन सकते हैं. अगर ये महामारी इस हाल तक पहुंच गई तो भारत में इसके नतीजे क्या होंगे.