कविता

 *प्रेम*
कसक होती है दिल में
जब तुम बाहर चुपके से आ जाते हो
प्यार कहो या प्रेम दोनों तुम ही हो
साथ निभाऊंगी तेरा हर वादे को
टूटने ना दूंगी तेरी मोहब्बत को
अंग लगाकर छोड़ ना देना
पास रहकर नजर फेर ना लेना
छोड़ो ना यह हसीन जिंदगी की सुनहरे पल
बीत जाएगी तो फिर लौट के ना आएगी
चलो चांदनी की रातों में गुम हो जाए
तारों भरी  रातों में सपने सजाएं
ये राते फिर आए या ना आए
अपनी महफिल सजा के कुछ देर खुशियां मनाएं


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*मीत*
मेरे मन के मीत हो तुम
नील गगन से आए हो
इस धरा पर स्वागत तेरा
चंदा की डोली सजा के तारों में छुप जाए हम
सपने में देखा करती थी
अब तेरी दीदार हुई
प्यासी नदिया की धारा थी
अब जाके मेरी प्यास मुझी
कहो तो सपनों को मैं सजा दूं
कांटो को मैं दामन में भर लूं
फूल बिछा दूं तेरी राहों में
अब कहीं जाना ना प्रीतम
साथ रहो पल भर के लिए
सपने में थोड़ा जी लूं मैं
फिर चले जाना प्रीतम तुम
इस धरा पर स्वागत तेरा स्वागत तेरा स्वागत तेरा



बीना मिश्रा


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