*लोक गीत* (भोजपुरी)

मैं अलवेली नार गुदाय आई गुदना रे।
पनिया भरन कूँ जाऊँ साथ आये सैया रे।।


जानती  कब थी  सखि री मोरी मटकी होगी कच्ची,
फूट गयी सखि मटकी मोरी रस्सी निकरी कच्ची
अब घर  कैसे जाऊँगी सासु को का समझाऊँगी
सास देगी गारी का मर गयी तोरी मैया रे।।
*मैं अलवेली नार...........*


रोटी करवे जब मैं जाऊँ   पीछे आवे  सैया रे।
मोहे जलावन देह न चूल्हो खुद ही फूकें दैया रे।
ननदी देख दारी जर बुझ जाये भावी तो हुकम चलाये रे
ससुरा जी से करे शिकायत मर गयी मोरी गूइंयाँ रे।।
*मैं अलवेली नार........*


बलमा मोरे बड़े री सूदे खड़े- खड़े  ही  रोवे रे। 
थर-थर कांपे बदन हमारो राह कोऊ नाय सूझे रे। 
बाबा की मैं बड़ी लाडली कबहु डाट नाय खायी रे
सोच - सोच या बात सखि मैं सोवत रही अटरिया रे।



लेखिका पुष्पा पाण्डेय