*मन के मीत*

मेरे मन के मीत हो तुम
नील गगन से आए हो
इस धरा पर स्वागत तेरा
चंदा की डोली सजा के तारों में छुप जाए हम
सपने में देखा करती थी
अब तेरी दीदार हुई
प्यासी नदिया की धारा थी
अब जाके मेरी प्यास मुझी
कहो तो सपनों को मैं सजा दूं
कांटो को मैं दामन में भर लूं
फूल बिछा दूं तेरी राहों में
अब कहीं जाना ना प्रीतम
साथ रहो पल भर के लिए
सपने में थोड़ा जी लूं मैं
फिर चले जाना प्रीतम तुम
इस धरा पर स्वागत तेरा स्वागत तेरा स्वागत तेरा!



लेखिका बीना मिश्रा
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