*पंचायत प्रतिनिधि महासंघ,उत्तर प्रदेश की अपील* 


ग्रामीण व्यवस्था की बेहतरी के लिए आगे आए-डॉ चतुरानन ओझा

सलेमपुर,देवरिया। सरकार द्वारा आरोपित आकस्मिक "लॉकडाउन" तालाबंदी से उत्पन्न संकट ने विशेषकर गांव से जुड़े सभी नौजवानों एवं मजदूरों के लिए मानवीय गरिमा पूर्ण जीवन जीना मुश्किल बना दिया है।आज के संकट काल में इसका गंभीर एहसास हो गया है कि गांव में अपने घर की व्यवस्था को दुरुस्त करने के साथ ही ग्राम पंचायत और न्याय पंचायत की व्यवस्था को दुरुस्त कर दिया जाय। उक्त बातें डॉ चतुरानन ओझा ने कही।आगे उन्होंने कहा कि अब जरूरी हो गया है कि अमीरों को बहुत अधिक अमीर और गरीब को और अधिक गरीब बनाने वाली इस व्यवस्था से प्रत्येक व्यक्ति की हिस्सेदारी और भागीदारी तय की जाए। उत्पादन एवं उपभोग में व्यक्ति की हिस्सेदारी सुनिश्चित की जाए ।
आज  जरूरी  है कि व्यक्ति के नागरिक अधिकारों का सम्मान करते हुए उसकी सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं के वास्तविक अधिकार बहाल किए जाएं ।
सरकार द्वारा थोपी गई तालाबंदी ने बड़े स्तर पर मजदूरों को शहरी औद्योगिक क्षेत्रों से गांव आने पर मजबूर कर दिया । इस दौरान देखने में आया है कि जिन प्रदेशों में ग्राम पंचायतें अधिकार संपन्न और नौकरशाही के दबाव से मुक्त रही हैं,उन्होंने बेहतरीन ढंग से इन मजदूरों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह किया है। उड़ीसा राज्य सरकार ने तो ग्राम पंचायत प्रधान को जिलाधिकारी स्तर के अधिकार देकर बेहतर परिणाम हासिल किया है ।  उत्तर प्रदेश इस मामले में पूरी तरह असफल साबित हुआ है ।इस  कोरोना काल में हजारों किलोमीटर की यात्रा कर जान बचाकर घर लौटे बेबस मजदूरों के लिए ग्राम पंचायतों को भारी परेशानी एवं बेचारगी की स्थिति से गुजरना पड़ा है।इस संकटकाल में पूरी नौकरशाही और सरकारी अमला पंचायतों के नियंत्रण के अभाव में जनता के लिए अनुपलब्ध एवं अनुपयोगी रहा है। ऐसी स्थिति में आज यह जरूरी हो गया है कि.......
* उत्तर प्रदेश की पंचायतों को उनके संवैधानिक अधिकार तत्काल प्रदान किए जाएं एवं सभी 29 विभागों को उसके अधीन किया जाए।
*गांव में काम करने वाले सभी मानदेय कर्मियों को संविधान प्रदत्त न्यूनतम वेतन देना सुनिश्चित किया जाए।
* सभी वृद्ध , अशक्त एवं बेरोजगार लोगों को निर्वाह योग्य पेंशन और भत्ता उपलब्ध कराया जाए।
* देश के दूसरे हिस्सों से बेरोजगार होकर गांव में वापस लौटे सभी मजदूरों को 6 महीने तक ₹10000(दस हजार) प्रतिमाह प्रदान किया जाए।
* औद्योगिक शहरों से घर गांव लौट रहे जिन मजदूरों की मौत हुई है उन्हें 2500000(पच्चीस लाख) रुपए का मुआवजा दिया जाए।
* मनरेगा के अंतर्गत प्रतिवर्ष 200 दिन काम दिया जाए एवं प्रतिदिन की मजदूरी ₹500(पांच सौ) की जाए।
* गांव में समान मुक्त एवं पड़ोसी स्कूल की पूर्णता सरकारी खर्चे वाली व्यवस्था स्थापित की जाए ।सभी निजी विद्यालयों का राष्ट्रीयकरण किया जाए एवं उनका पूर्ण नियंत्रण पंचायत शिक्षा समितियों को दी जाए।
* न्याय पंचायतों को पुनर्स्थापित किया जाए, जिससे ग्रामवासी थाना- कचहरी का चक्कर लगाए बगैर और बिना किसी खर्च के अधिकांश विवादों का  त्वरित समाधान प्राप्त कर सकें।
* किसानों के लिए स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशें लागू की जाएं। उनके उत्पादों की लागत से डेढ़ गुना मूल्य पर सरकारी खरीद सुनिश्चित की जाए ।


फल और सब्जियों के संरक्षण के लिए न्याय पंचायत स्तर पर भंडारण घर "कोल्ड स्टोरेज" का निर्माण कराया जाए ।


_संकृत्यायन रवीश पाण्डेय_