साम्‍यवादी बनाम पूँजीवादी शासन और कोरोना का कहर : चतुरानन ओझा

कोरोना ने मार्क्सवादी शासन की सुप्रिमसी साबित कर दी है। चीन में सबसे पहले कोरोना आया। कोई अनुभव नहीं था। कोई दवाई नहीं थी लेकिन साम्यवादी पार्टी के शासकों ने लॉकडाउन किया। सख्ती से लागू किया। स्वास्थ्य व्यवस्था अच्छी की। देशभर से डॉक्टर्स बुला लिये। वुहान में। इलाज किया। 78 दिन बाद कोरोना से बाहर आ गये । ना किसीकी नौकरी गयी। ना अर्थव्यवस्था डूब गयी। अब सब नोर्मल हो गया। गाडी पूरी तरह पटरी पर आ गई है। ये कमाल है साम्यवादी शासन का।


केरल भारत का ही हिस्सा है। सबसे पहले कोरोना केरल में आया। साम्यवादी शासन ने अच्छी तरह से सब कुछ मेनेज किया। किसी समुदाय विशेष को जिम्मेदार नहीं ठहराया। कोरोना को कंट्रोल कर लिया। आज भारत में सबसे अच्छी स्थिति केरल की है। ये कमाल है साम्यवादी शासन का।


पश्चिम बंगाल में साम्यवादी शासन था। आज वहां कम्युनिस्टों का शासन होता तो केरल की तरह अच्छी तरह कोरोना को मेनेज कर लिया होता। साम्यवादी शासन में कुछ जादु होता है जो पूंजीवादीओं को समझ में नहीं आता है। कोई तो कारण होगा दुनिया के हरेक देश में कम्युनिस्ट पार्टी है। अमेरिका में भी अश्वेत नागरिकों पर हो रहे अत्याचार का विरोध करने में सबसे आगे कम्युनिस्ट ही रहे हैं। 


क्यूबा छोटा सा देश है। कोरोना को प्रवेश करने ही नहीं दिया। देश में जरूरत से ज्यादा डॉक्टर तैयार होते हैं। दुनिया भर को फ्री में सेवा देते हैं। क्यूबा में भी साम्यवादी पार्टी का शासन है।


उत्तर कोरिया के शासक को पागल घोषित करने के लिए अमेरिका ने क्या क्या नहीं किया? हमारे गोदी मिडिया में आये दिन किम जोन उंग को क्रुर पागल शासक घोषित करने के लिए स्टोरी चलती रहती है। लेकिन कोरोना ने उसे बुद्धिमान साबित कर दिया। उत्तर कोरिया में एक भी कोरोना केस नहीं है। उसको पागल साबित करनेवाला अमेरिका और ट्रंप पागल है ये दुनिया को समझ में आने लगा है।


वियतनाम में साम्यवादी शासन है। वियतनाम ने भी कोरोना को अच्छी तरह से कंट्रोल किया हुआ है।


भारत की जनता जितना जल्द साम्यवादी विचारधारा का स्वीकार कर लेगी उतना जल्द शांति सुख चैन अमन होगा इस देश में। तय आपको करना है मार्क्सवाद चाहिए या दमनकारी फासीवाद, विभाजनकारी जातिवाद या शोषणखोर पूंजीवाद?