*ससुराल*

अक्सर कहा जाता है कि 
मायका 
माँ के साथ ही,
खत्म हो जाता है !
सच कहूं तो,
ससुराल भी 
सास के साथ ही 
खत्म हो जाता है !


रह जाती हैं बस यादें,
उनकी उस न्यौछावर की,
जो तुमपर वार कर दी थी मिसरानी को !


उनकी उस हिदायत की,
जो तुम्हारी मुट्ठियों में चावल भरकर 
थाली में डालने की रस्म के दौरान 
कान में फुसफुसाते हुए दी थी कि
'यूंही अन्नपूर्णा बन कर रहना हमेशा !'


उनकी उस ढाल की जो,
मुंह दिखाई में तुम्हारे 
नाच न आने पर तंज कसती
औरतों के सामने 'गाना आवै इसे !'
कहकर तन गई थी!


उनकी उस  'सदा सौभाग्यवती रहो!'
वाले आशीष की 
जो तुम्हें अपने गठजोड़ संग 
उनके चरण स्पर्श करते ही मिली थी!


उनके उस अपनेपन की, 
जो तुम्हें पहली रसोई की 
रस्म निभाते कही थी 
'सब मैंने बना दिया है,
बस तुम खीर में शक्कर डाल देना !
रस्म पूरी हो जाएगी !'


उनकी उस चेतावनी की 
जो हर त्यौहार से पहले 
मिल जाया करती थी,
'अरी सुन कल सुहाग का त्यौहार है , 
मेहंदी लगा लियो !'


 



_लेखिका_ *पुष्पा पाण्डेय*