*आज़ादी का वो जूनूनी सपूत जिसने खुद जो सदा आज़ाद रखा* 

 (चंद्रशेखर आज़ाद की जन्मदिवस पर विशेष)
23 जुलाई 1906 को जन्मे इस महान आत्मा ने जीवन के केवल 25 वर्ष देखे ......लेकिन उस 25 वर्षों में आतातायिओं के सैकड़ों वर्षों से साम्राज्य को हिला के रख दिया था .....
एक बार बोल कर देखिये "मैं आजाद था आजाद हूँ और आजाद ही मरूँगा" रग रग में चंद्रशेखर आजाद को महसूस करेंगे।
आज इस महान आत्मा ...चंद्रशेखर आजाद ...का जन्म दिवस है ...
मूछों पर ताव, कमर में पिस्टल, कांधे पर जनेऊ, शेर सा व्यक्तित्व,,
वो याद थे, याद हैं और याद रहेंगे क्योंकि वो आज़ाद थे, आज़ाद हैं, आज़ाद ही रहेंगे ।।
     आज़ाद को कम उम्र में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल किया गया था।  बनारस (अब वाराणसी) में मोहनदास के गांधी के असहयोग आंदोलन  उनकी बुद्धिमत्ता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब इस आंदोलन में भाग लेने पर अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया तो जज ने उनसे उनके तथा उनके पिता के नाम के बारे में सवाल किया तो जवाब में चन्द्रशेखर ने कहा, “मेरा नाम आज़ाद है, मेरा पिता का नाम स्वतंत्रता और पता कारावास है”| इसी घटना के बाद से उन्हें चंद्रशेखर आजाद के नाम से जाना जाने लगा | भारतीय क्रांतिकारियों ने जल्द ही उसे आज़ाद कहना शुरू कर दिया, और उसने भारतीय लोगों के बीच लोकप्रियता हासिल की,
    वे पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व सरदार भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से एक थे| वर्ष 1922 में जब महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन अचानक बंद करने की घोषणा की उस समय उनकी विचारधारा में बदलाव आया| वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन गये|
    जब क्रांतिकारी आंदोलन उग्र हुआ, तब आजाद उस तरफ खिंचे और 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट आर्मी' से जुड़े। रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी षड्यंत्र (1925) में सक्रिय भाग लिया और पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए।
   17 दिसंबर, 1928 को चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने शाम के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया और ज्यों ही जे.पी. साण्डर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकले तो राजगुरु ने पहली गोली दाग दी, जो साण्डर्स के माथे पर लग गई वह मोटरसाइकिल से नीचे गिर पड़ा। फिर भगत सिंह ने आगे बढ़कर 4-6 गोलियां दाग कर उसे बिल्कुल ठंडा कर दिया। जब साण्डर्स के अंगरक्षक ने उनका पीछा किया, तो चंद्रशेखर आजाद ने अपनी गोली से उसे भी समाप्त कर दिया।


इतना ना ही नहीं लाहौर में जगह-जगह परचे चिपका दिए गए, जिन पर लिखा था- लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है। उनके इस कदम को समस्त भारत के क्रांतिकारियों खूब सराहा गया।
(आज पूरा हिंदुस्तान,पाकिस्तान और  बंग्लादेश के सहित उन तमाम देशों में भारतीय प्रेमी उनको याद करते है और अपने बच्चों को उनकी वीरता के कहानियां सुनाते है)
*जय हिंद*



*अरविन्द पाण्डेय, सलेमपुर*