एनकाउंटर की यह प्रवृत्ति 100% गलत है : डाॅ0 चतुरानन ओझा


 इनकाउन्‍टर न्याय की सहज अवधारणा को ही नष्ट कर देती है और शासकीय निरंकुशता को बेलगाम करती है।परन्तु हम में से बहुत सारे लोग त्वरित  न्याय पर प्रसन्न होते दिखाई पड़ने लगे हैं।एनकाउंटर पर खुश होने की जगह ध्वस्त हो चुकी न्याय व्यवस्था पर रोने की जरूरत है और बस में हो तो सुधारने की नही वरन बदलने की जरूरत है; जिससे उसमे विश्वास पैदा हो सके। चाहे वह तेलंगाना का  हो या कानपुर का यह इनकाउंटर
 सबको पता है कि ये एनकाउंटर तो बिल्कुल नहीं है।ये एनकाउंटर सरकार,संविधान, न्याय व्यवस्था पर सवालिया निशान है और उनके पतन का जीता जागता प्रमाण है ।अब अगर वर्तमान एनकाउंटर के सामाजिक और राजनीतिक पक्ष पर दृष्टि डालें तो एक अजीब और घृणास्पद और सड़ांध से भरी हुई बहस होती दिखाई दे रही है। किसी ने इसे ठाकुरवाद और ब्राह्मणवाद से जोड़ दिया  तो किसी ने सपा ,बसपा, और भाजपा से जोड़ दिया।किसी ने पकड़े जाने पर कहा कि अपराधियों का भी जातीय आरक्षण हो गया तो किसी ने कहा कि  नरोत्तम मिश्रा ने ब्राह्मणवाद करते हुए सरेंडर करा दिया तो किसी ने कहा ठाकुरवाद के नाम पर ब्राह्मणों के खिलाफ कार्यवाही है क्योंकि सेंगर जैसे लोगो के साथ ऐसा व्यवहार क्यों नहीं किया गया। पकड़े जाने पर ये कहा गया कि सवर्णवाद हुआ  और मार दिया गया तो खाकी और खादी को बेनकाब होने से बचाने के लिए किया गया कदम बता दिया गया।इसमें एक बात तो साफ रही कि बयान बहादुरों को भी इस मामले में पल पल बयान बदलने पड़े। जो विकास दुबे ने किया वो अकल्पनीय  और भयावह था और जो अब हुआ वो न्याय व्यवस्था पर पूर्ण अविश्वास  और पूरी तरह से बदला है जो मेरी दृष्टि में व्यवस्था के लिए उचित नही है। अगर पुलिस या सरकार इससे ये संदेश देंने में कामयाब हुई कि उससे टकराने का ख्वाब देखना गलत है तो वही सरकार और पुलिस अपनी स्थापना के मूल सिद्धांतों से पूर्ण समझौता कर गयी। सरकार और पुलिस बदला लेने के लिए नहीं बने है वो बने है ऐसे किसी विकास दुबे या सेंगर को न पनपने देने के लिए जो वो कभी नहीं करते हैं।