*जिसने राम को मर्यादापुरुषोत्तम के रूप में स्थापित किया*


*संत तुलसीदास का जन्म पर विशेष*


*अरविन्द पाण्डेय द्वारा*


*सलेमपुर देवरिया* श्रावण शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अवतरित गोस्वामी तुलसीदास ने सगुण भक्ति की रामभक्ति धारा को ऐसा प्रवाहित किया कि आज गोस्वामी जी राम भक्ति के पर्याय बन गए। गोस्वामी तुलसीदास की ही देन है जो आज भारत के कोने-कोने में रामलीलाओं का मंचन होता है। कई संत राम कथा के माध्यम से समाज को जागृत करने में सतत्‌ लगे हुए हैं। भगवान वाल्मीकि की अनूठी रचना 'रामायण' को आधार मानकर गोस्वामी तुलसीदास ने लोक भाषा में राम कथा की मंदाकिनी इस प्रकार प्रवाहित की कि आज मानव जाति उस ज्ञान मंदाकिनी में गोते लगाकर धन्य हो रही है।


तुलसीदास का पूरा नाम गोस्वामी तुलसीदास हुआ करता था और इनका जन्म सन् 1511 में उत्तर प्रदेश के राजापुरा में हुआ था। हालांकि इनके जन्म के वर्ष और स्थान को लेकर कोई सटीक जानकारी नहीं है। इनके माता-पिता का नाम हुलसी देवी और आत्माराम दुबे थे। ऐसा कहा जाता है कि इनका जन्म अशुभ नक्षत्रों के दौरान हुआ था। जिसकी वजह से यह अपने माता-पिता के लिए अशुभ साबित हुए थे और इनके अशुभ होने के कारण इनके माता-पिता ने इनका त्याग कर दिया था। जिसके बाद संत बाबा नरहरिदास ने इनका पालन पोषण किया था और इनको बाबा नरहरिदास ने ही विद्या दी थी। ऐसा माना जाता है कि तुलसीदास को वेद, पुराण एवं उपनिषदों की ज्ञान था। साथ में ही इनको अवधी और ब्रज भाषा भी खूब अच्छे से आती थी। इन्होंने इन भाषाओं में ही अपनी रचानाओं को लिख रखा है। तुलसीदास का विवाह पंडित दीनबंधु पाठक की बेटी रत्नावली से हुआ था और इस शादी से इन्हें एक बेटा हुआ था। जिसका नाम तारक था। ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास अपने पत्नी से बेहद ही प्यार किया करते थे और एक पल भी उनसे दूर नहीं रहा करते थे।


एक दिन रत्नावली को तुलसीदास पर काफी क्रोध आ गया और उन्होंने गुस्से में तुलसीदास से कहे दिया कि वो जीतना उसने प्यारा करते हैं, उतना समय प्रभु राम की भक्ति में क्यों नहीं लगाते हैं। अपनी पत्नी की बात उनके दिल पर लग गई और उन्होंने प्रभु राम की भक्ति में खुद को लीन कर लिया। भगवान राम के भक्ति में पूरी तरह से डूबे तुलसीदास ने कई सारी तीर्थ यात्रा की और यह हर समय भगवान श्री राम की ही बातें लोगों से किया करते। संत तुलसीदास ने काशी, अयोध्या और चित्रकूट में ही अपना सारा समय बिताना शुरू कर दिया।


इनके अनुसार जब उन्होंने चित्रकूट के अस्सी घाट पर “रामचरितमानस” को लिखना शुरू की तो उनको श्री हनुमान जी ने दर्शन दिए और उनको राम जी के जीवन के बारे में बताया। तुलसीदास जी ने कई जगहों पर इस बात का भी जिक्र किया हुआ है कि वे कई बार हनुमान जी से मिले थे और एक बार उन्हें भगवान राम के दर्शन भी प्राप्त हुए थे। वहीं तुलसीदास ने भगवान राम के साथ हनुमान जी की भक्ति करने लगे और उन्होंने वाराणसी में भगवान हनुमान के लिए संकटमोचन मंदिर भी बनवाया। भगवान राम जी के जीवन पर आधारित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ को पूरा करने में संत तुलसीदास को काफी सारा समय लगा था और इन्होंने इस महाकाव्य को 2 साल 7 महीने और 26 दिन में पूरा किया था।


रामचरितमानस में तुलसीदास ने राम जी के पूरे जीवन का वर्णन किया हुआ है। रामचरितमानस के साथ साथ उन्होंने हनुमान चालीसा की भी रचना की हुई है। संत तुलसीदास जी की मृत्यु तुलसीदास के निधन के बारे में कहा जाता है कि इनकी मृत्यु बीमारी के कारण हुई थी और इन्होंने अपने जीवन के अंतिम पल वाराणसी के अस्सी घाट में बिताए थे। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवन के अंतिम समय में विनय-पत्रिका लिखी थी और इस पत्रिका पर भगवान राम ने हस्ताक्षर किए थे। इस पात्रिका को लिखने के बाद तुलसीदास का निधन 1623 में हो गया था।