न्याय में देरी व लचर कानून व्यवस्था बना आठ मौतों का कारण



कानपुर में हिस्ट्रीशीटर को गिरफ्तार करने गयी पुलिस टीम पर हमला
दुर्दांत अपराधी विकास दुबे और साथियों ने घात लगाकर बरसायीं गोलियां
सभी राजनीतिक दलों का हाथ रहा विकास के सिर पर
सलेमपुर, देवरिया। पिछले दिनों कानपुर में हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे को गिरफ्तार करने गयी उत्तर प्रदेश पुलिस टीम के सी ओ देवेन्द्र मिश्रा समेत अनेक थानाध्यक्षों के साथ बीस जाबांज सिपाहियों की टीम गिरफ्तारी करने पहुंची थी।विकास को इसकी जानकारी शायद पहले ही हो चुकी थी।तभी तो घर के बाहर जे सी बी लगाकर रास्ता अवरुद्ध कर दिया था।जिससे पैदल ही पुलिस को चलकर दबिश के लिए उसके घर तक पहुंचना पड़ा।जैसे ही घर के अंदर पुलिस की टीम ने कदम रखा कि छतों पर पहले से ही घात लगाए बैठे विकास दुबे व उसके साथियों ने अत्याधुनिक हथियारों से ताबड़तोड़ गोलियां बरसानी शुरू कर दी।पुलिस हालात को समझ कर संभालती तबतक देर हो चुकी थी और सी ओ सहित पुलिस के आठ जवानों ने अपने जान गवां बैठे।
बताते चलें कि विकास दुबे पर पहला मामला 2003 में श्रम संविदा बोर्ड के चेयरमैन व दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री संतोष शुक्ला की हत्या का इल्जाम लगा।इस मामले के खिलाफ कोई गवाह न मिलने के कारण वह न्याय के मंदिर से बाइज्जत बरी हो गया।
विकास पर कुल 52 मुकदमें दर्ज हैं।जिसमे कई मामलों में अधूरी चार्जसीट, गवाहों को डरा धमकाकर वह ऐसे ही बरी हो चुका है।2002 बसपा सरकार में विकास की धौस इस कदर चला कि अबैध कब्जो से लेकर आस पास के दस से अधिक गांवो को अपना दहशत कायम करने में सफल रहा।जिसके परिणाम स्वरूप 15 वर्षो तक जिला पंचायत सदस्य व अपनी पत्नी ऋचा दुबे को 1995 -2000 में ग्राम प्रधान बनाने में सफल रहा।भाजपा के वर्तमान योगी सरकार ने प्रदेश में अनेक अपराधियों का एनकाउंटर हुए।लेकिन राजनीतिक प्रभाव के चलते पुलिस ने विकास दुबे के तरफ आंख तक नही उठा पायी।यही नही बल्कि कहा तो यहां तक जाता है कि पूर्ववर्ती सपा बसपा के अनेक मंत्री विधायक खुले तौर पर साथ देते रहे हैं।अगर उक्त अपराधी पर समय रहते उत्तर प्रदेश पुलिस उसके अपराधों को साबित करने में सफल रही होती तो शायद विकास जेल की सलाखों में रहता और शहीद हुए सिपाहियों की जान बच गयी होती तथा इलाका अपराध मुक्त होता।


*रवीश पाण्डेय/सुनील पाण्डेय*