*ओ भी क्या दिन हुआ करते.......!*

_आज हवा में है गंध भरा_
_सांस भी ले रहे सब जरा जरा_
_कुछ न रहा हरा भरा_
_हर इंसान है डरा डरा_


_शुद्ध हवा में बिंदास घुमा करते थे.........!_
_ओ दिन भी क्या दिन हुआ करते थे......!_
_फैल गयी जहर इन हवाओं में_
_क्या रहा अब इन घटाओं में_
_सकुन था कभी पेड़ की छांव में_
_मिट्टी की खुश्बू भी थी राहों में_
_बच्चे बिना डर के बाहर खेला करते थे_
_ओ दिन भी क्या दिन हुआ करते थे........!_
_आज लोग बाहर सैर पर नही जाते_
_जाते हैं तो भी मास्क पहन के जाते_
_आज बच्चे बाहर खेलने नही जाते_
_जाते भी तो माँ-बाप नजर नही हटाते_
_पहले कभी बच्चे गायब नही हुआ करते थे........!_
_ओ दिन भी क्या दिन हुआ करते थे........!_
_बच्चे अब कागज की नाव कहाँ चलाते हैं_
_कहाँ अब ओ उड़न तश्तरी उड़ाते हैं_
_कहाँ सब मिलकर भागम भाग खेलते हैं_
_कहाँ बैडमिंटन की चिड़ियां को ऊंचा उछालते हैं_
_हम बेफिक्र तालाब के किनारे बैठा करते थे........!_
_ओ दिन भी क्या दिन हुआ करते थे.....!_
_पहले तो सुबह,दोपहर,शाम हुआ करती थी_
_अब तो सुबह के बाद सिर्फ रात हो जाती है_
_पहले तो मुर्गे की कुकुडुकू और चिड़ियों की आवाज ही उठा दिया करती थी_
_अब तो अलार्म के बजने के बाद ही सुबह हो पाती है_
_पहले तो गलियों में बच्चों की आवाज गुंजा करती थी_
_अब तो बस गाड़ियों की कतार नजर आती है_


_जब हम दोस्तों से लड़ते थे तब मनाया भी करते थे......!_
_ओ दिन भी क्या दिन हुआ करते थे........!_
_बचपन मे बड़े होने का शौक भी था_
_माँ का प्यार था तो पापा का खौफ भी था_
_थोड़ी शैतानी थोड़ा तहजीब का दौर भी था_
_आज पता चली कीमत,ओ दिन कुछ और ही था_
_सिर्फ चाँद ही नही,आसमान में तारे भी दिखा करते थे_
_ओ दिन भी क्या दिन हुआ करते थे........!_


 



*लेखिका-कृतिका पाण्डेय*