*विकास दुबे का अंत राजनीति व अपराध के संबंधों का अंत नही है*


_नर के रूप में छिपे भेड़िए का हुआ अंत_


सलेमपुर, देवरिया। अपराध की दुनिया मे अपना जड़ जमा चुके विकास दुबे के एनकाउंटर पर सोशल मीडिया से लेकर टी वी डिवेट तक उठ रहे सवालों के बीच एक अपराधी का अंत सामाजिक दृष्टिकोड से कितना प्रासंगिक है इस पर अनेक सवाल खड़े हो रहे हैं।


आर एस एस के वरिष्ठ स्वयं सेवक इन्द्रहास पाण्डेय उर्फ पप्पू पाण्डेय ने संवाददाता रवीश पाण्डेय से एक बातचीत के दौरान कहा कि कुख्यात अपराधी विकास दुबे के पकड़ने गयी पुलिस के साथ हुए मुठभेड़ में आठ सुरक्षा कर्मियों की दर्दनाक मौत व सात लोगों का घायल हो जाना सचमुच हृदय विदारक व निंदनीय है।लेकिन साथ ही यह घटना कहीं न कहीं पुलिस को सवालों के घेरे में खड़ा करता है।भारी संख्या में पहुंचे पुलिस के जवानों से कहाँ चूक हुयी जिसका परिणाम इतना भयावह हुआ।भ्रष्टाचार व घूसखोरी में लिप्त पुलिस विभाग से आम जनता में वयाप्त खौफ दिन पर दिन खतम होता जा रहा है जो निश्चित रूप से विचारणीय प्रश्न है।अंत मे उन्होंने कहा कि विकास जैसे अपराधियों का हश्र जो हुआ है वह सराहनीय है और सरकार द्वारा उठाया गया कदम एक सुरक्षित व भयमुक्त समाज के निर्माण में मिल का पत्थर साबित होगा।


शिक्षक ब्रजेश पति त्रिपाठी ने विकास दुबे के एनकाउंटर पर कहा कि प्रशासन के लोगों द्वारा किये गए गलत कार्यो का नतीजा रहा कि इतने लंबे समय तक विकास दुबे अनेक लोगों को बेघर करता रहा।प्रशासन के लापरवाही के चलते विकास थाने के अंदर भी हत्या कर दिया और बेखौफ घूमता रहा।आज उसके मारे जाने पर जातिवाद का जहर बो रहे लोगों से पूछना चाहता हूं कि वे तब कहाँ थे जब इसी विकास दुबे ने अनेक ब्राह्मणों की हत्या की।तब ये घड़ियाली आंशू बहाने वाले लोग कहाँ छुपे हुए थे।अपराधी का कोई जाति या मजहब नही होता अपराधी अपराधी होता है।जो सभ्य मानव समाज का दुश्मन होता है।


स्कॉलर्स पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य सुनील पाण्डेय ने कहा कि शासन व प्रशासन द्वारा उठाया गया कदम प्रशंसनीय है।जिन परिवारों का विकास दुबे ने उजाड़ा था उन्हें और कुछ मिला या न मिला लेकिन देर सबेर न्याय मिला।उन परिवारों को इस बात की खुशी है कि विकास यदि जिंदा बच गया होता तो न जाने लभी कितने आशियाने उजड़ता।इस घटना से प्रशासन को सबक लेते हुए समाज मे छिपे अभी अनेक दुर्दांत अपराधियों का सफाया करना बाकी है।


चाहें जो भी हो विकास का अंत अपराध का अंत नही है और ना ही राजनीति एवं अपराध के सम्बंध का अंत नहीं है।यह अंतिम घटना भी नहीं होगी।विकास दुबे सत्ताधीशों के लिए जब तक उपयोगी था जिंदा रहा।आगे बढ़ा।धन शोहरत और दबदबा कायम करने में सफल रहा।अपने संबंधों पर अतिशय बिश्वास और भरोसा ने उसे दुस्साहसी बना दिया।वह अपने को अपने सहयोगी राज नेताओं के लिए अपरिहार्य समझने की भूल कर बैठा।उसकी इसी भूल ने उसे इस अंजाम तक पहुंचा दिया।उसका जिन्दा रहना वर्तमान प्रदेश सरकार को कठघरे में खड़ा करता।जांच में परत दर परत भेद खुलते।सरकार की परेशानी बढ़ती।उसके मरने से सरकार बदनामी से बच गई।आश्चर्य जनक रूप से मुठभेड़ से भागा विकास दुबे उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर तक पहुंच गया।निहत्था देवदर्शन वी आई पी पर्ची के साथ।मीडिया के सामने विकास दुबे कानपुर वाला कह कर अपने को सुरक्षा गार्ड के सुपुर्द कर दिया।मध्यप्रदेश पुलिस ने उसे न्यायिक हिरासत में भेजने की जरुरत महसूस नहीं की, उत्तरप्रदेश पुलिस को पंचनामा बनाकर सुपुर्द कर दिया।उत्तरप्रदेश की एस टी एफ उसे लेकर चली। रास्ते में कानपुर आकर वेलोरो पलट गयी।स्वयं गिरफ्तारी देने वाला विकास दुबे भागने लगा और पुलिस की गोली का शिकार हुआ। अन्तिम सबूत भी समाप्त।साथी पहले ही मारे जा चुके थे।घर नष्ट किया जा चुका था।सरकार ने राहत की सांस ली।उपयोग समाप्त काम तमाम।


*संकृत्यायन रवीश पाण्डेय*