बागी बलिया का वो शेर जो 1942 में ही करा लिया बलिया को आज़ाद


*आईये आज जानते है चित्तू पाण्डेय जी  गाथा*


*अरविन्द पाण्डेय की रिपोर्ट*


सलेमपुर, लोकसभा। साल था 1942, अगस्त के बारिश वाले इस महीने में उस साल देश भीग नहीं रहा था, बल्कि सुलग रहा था. 8 अगस्त
 1942 को मुंबई से अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया गया जो देखते ही देखते देशभर में गूंज गया. 9 अगस्त  को देशभर में बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां हो रही थीं, लेकिन इस घमासान के बीच उत्तर प्रदेश का बलिया जिला अपनी अलग ही तैयारी कर रहा था. 


बलिया ऐसे बन गया बागी बलिया


अंग्रेजों ने कई क्रांतिकारी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया. गांधी-नेहरू समेत कांग्रेस कार्य समिति के सभी सदस्य गिरफ्तार थे. इसके विरोध में बलिया भी उठा, और ऐसा उठा कि इतिहास में बलिया को अपना जग प्रसिद्ध नाम मिला बागी बलिया. जिस शख्सियत ने बलिया को यह पहचान दिलाई, उन्हें आदर सहित चित्तू पांडेय कहते हैं. आजादी के आजाद रणबांकुरे, चित्तू पांडेय. 1865 को जन्मे चित्तू पांडेय
बलिया के रत्तू-चक्र गांव में ब्राह्मण परिवार में जन्में चित्तू पांडेय. साल 1865 को जन्मे मां भारती के इस लाल ने पूरा जीवन अंग्रेजों और दासता से देश की मुक्ति में लगा दिया. लोगों को आंदोलनों के लिए जागरूक करना,


अंग्रेजी नीतियों का विरोध करना यही उनका दैनिक कर्म था. बलिया की जनता पर उनके आंदोलनों ने काफी प्रभाव छोड़ा था और वह उनके एक इशारे पर पीछे चलने को तैयार रहती थी. 


9 अगस्त 1942 को शुरू हुआ अंग्रेजों भारत छोडो 
हुआ यूं कि आजादी की लड़ाई के दौरान चित्तू पांडेय अपने साथियों जगन्नाथ सिंह और परमात्मानंद सिंह के साथ गिरफ्तार कर लिए गये थे. इससे बलिया की जनता में क्षोभ से भर गई. इसके बाद नौ अगस्त 1942 को महात्मा गांधी और पं. नेहरू के साथ-साथ कांग्रेस कार्य समिति के सभी सदस्य भी गिरफ्तार कर अज्ञात जगह भेज दिए गए. इससे जनता में और भी रोष पनप गया. 


जनता ने पहचान लिया अपना हक


चित्तू पांडेय की जागरूक की हुई जनता ने जब अपना हक पहचान लिया तो शहर को ही अपना बनाने निकल पड़ी. बलिया जिले के हर प्रमुख स्थान पर प्रदर्शन व हड़तालें शुरू हो गईं.


तार काटने, रेल लाइन उखाड़ने, पुल तोड़ने, सड़क काटने, थानों और सरकारी दफ्तरों पर हमला करके उन पर राष्ट्रीय झंडा फहराने के काम में जनता जुट गई थीं.


वाराणसी से चली आजाद ट्रेन


पांच दिनों तक पूरे बलिया में यह सिलसिला जारी रहा. इतने में देशभर में आंदोलन हो रहे थे जो कि उग्र हो चले थे. छात्रों ने कॉलेज छोड़ दिए और सड़कों पर उतर आए. 14 अगस्त को वाराणसी कैंट से विश्व विद्यालय के छात्रों की  एक ट्रेन जिसे आजाद ट्रेन का नाम दिया गया था, वह बलिया पहुंची. 


जनता में जोश की लहर


ट्रेन में भरे छात्रों के पहुंचने का नतीजा यह हुआ कि बलिया की जनता दोगुने जोश से उग्र आंदोलन करने लगी. अब जनता अपना हक लेने पर आमादा थी. अगले दिन 15 अगस्त को पांडेय पुर गांव में एक गुप्त मंत्रणा हुई. उसमें यह तय हुआ कि 17 और 18 अगस्त तक तहसीलों तथा जिले के प्रमुख स्थानों पर कब्जा कर 19 अगस्त को बलिया पर हमला किया जाएगा.


कई थानों पर क्रांतिकारियों का अधिकार


तय योजना के अनुसार, 17 अगस्त की सुबह रसड़ा बैरिया, गड़वार, सिकंदरपुर , हलधरपुर, नगरा, उभांव आदि जगहों पर आंदोलनकारियों ने धावा बोल दिया. सब कुछ भीड़ के मनमुताबिक हो रहा था. लेकिन यहां एक धोखा हो गया.
बैरिया थाने पर जनता ने जब राष्ट्रीय झंडा फहराने की मांग की तो थानेदार राम सुंदर सिंह तुरंत तैयार हो गया. थानेदार ने ऐसा दिखावा किया कि जैसे वह खुद क्रांतिकारियों में शामिल है.
लोगों ने इसके बाद उससे हथियार मांगे तो उसने अगले दिन देने की बात पर उलझा लिया. 


थानेदार बना धोखेबाज, बरसा दीं गोलियां


अगले दिन जब क्रांतिकारी एक जुट होकर थाने से हथियार लेने पहुंचे तो नेदार ने धोखा देकर करीब 19 स्वतंत्रता सेनानियों को मार डाला. गोली-बारूद खत्म हो जाने के बाद थानेदार ने अपने सिपाहियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया.
बैरिया जैसा ही नृशंस कांड रसड़ा में गुलाब चंद के अहाते में भी हुआ. पुलिसिया जुल्म में बीस लोगों की जानें गईं. इस तरह आंदोलनकारियों ने 18 अगस्त तक 15 थानों पर हमला करके आठ थानों को पूरी तरह जला दिया.


*19 अगस्त को जिले में राष्ट्रीय सरकार का विधिवत गठन*


19 अगस्त को जनता जिला मुख्यालय बलिया पहुंची. यहां भारी भीड़ के आता देखकर, कलेक्टर घबरा गया. कलेक्टर ने चित्तू पांडेय और जगन्नाथ सिंह सहित 150 सत्याग्रहियों को रिहा कर दिया.


19 अगस्त को जिले में राष्ट्रीय सरकार का विधिवत गठन किया गया जिसके प्रधान चित्तू पांडेय बनाए गए. जिले के सारे सरकारी संस्थानों पर राष्ट्रीय सरकार का पहरा बैठा दिया गया.
हनुमान गंज कोठी में बना मुख्यालय सारे सरकारी कर्मचारी पुलिस लाइन में बंद कर दिए गए. हनुमान गंज कोठी में राष्ट्रीय सरकार का मुख्यालय कायम किया गया. लोगों ने नई सरकार को खुले हाथों से दान किया, ताकि नई सरकार स्थापित होकर चल सके. चित्तू पांडेय अब नगर को नए सिरे से चलाने की योजनाएं बनाने लगे. 


*नीदर सोल ने आकर किया दमन*


लेकिन अंग्रेज चुप नहीं बैठे थे. एक अंग्रेज ऑफिसर नीदर सोल 22 अगस्त को ढाई बजे रात में रेल गाड़ी से सेना की एक टुकड़ी लेकर बलिया पहुंचा. नीदर सोल ने मिस्टर वॉकर को नया जिलाधिकारी बनाया और 23 अगस्त को नदी के रास्ते सेना की और टुकड़ियां भी पहुंच गईं. इसके बाद अंग्रेजों ने अपनी दुर्दांत दमन नीति अपनाकर लोगों को बुरे से बुरे कष्ट के साथ मौत के घाट उतारा. 


*1946 में हुआ निधन*


12 बजे दिन में नदी के रास्ते सेना की दूसरी टुकड़ी पटना से बलिया पहुंची. इसके बाद अंग्रेजों ने लोगों पर खूब कहर ढाये. चित्तू पांडेय को गिरफ्तार करने पहुंची पुलिस उन्हें तो नहीं पा सकी, लेकिन गांव-गांव उनके होने के शक में जला दिए गए.
वीर रणबांकुरे चित्तू पांडेय 1946 को आजादी से एक साल पहले विदा हो गए. उनकी वीरता को नमन.