भोजपुरी के कालजयी गीतों से सदा याद किए जाएंगे : मोती बी०ए०


*(जन्मदिन पर विशेष)*


*अरविन्द पाण्डेय द्वारा*
सलेमपुर देवरिया। आज के ही दिन,1 अगस्त सन् 1919 को मोती बीए का जन्म, उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में बरहज कस्बे के निकट बरेजी गांव में हुआ था। आप पिता राधाकृष्ण उपाध्याय व मां कौशल्या (कौलेसरा) देवी की संतान थे। बरहज के 'किंग जार्ज स्कूल' अब हर्षचन्द इ० का० से 1934 में हाईस्कूल और गोरखपुर के 'नाथ चन्द्रावत कालेज' से 1936 में इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। कालेज के अंग्रेजी प्रवक्ता मदन मोहन वर्मा महादेवी जी के अनुज रहे व उनकी प्रेरणा से महादेवी वर्मा की काव्य रचनाओं को देखकर आपमें काव्य प्रतिभा का प्रस्फुटन हुआ। 'लतिका', 'बादलिका', 'समिधा', 'प्रतिबिम्बिनी' और 'अथेति' उनकी प्रमुख हिंदी काव्यकृतियाँ रहीं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से 1938 में बी०ए० करने के बाद ही आप कवि सम्मेलनों में छा जाने वाले 'मोती बी०ए०' नाम से इतने प्रसिद्ध हुए कि बाद में एम०ए०, बी०टी० और साहित्यरत्न की उपाधि अर्जित करने के बावजूद, 'बी०ए०' शब्द आपके नाम का अभिन्न हिस्सा बन गया। आप आजीविका के लिए पत्रकारिता से भी जुड़े रहे।   प्रसिद्ध क्रान्तिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल के दैनिक पत्र 'अग्रगामी', शिवप्रसाद गुप्त के 'आज' तथा बलदेव प्रसाद गुप्त के 'संसार' के संपादकीय विभाग से सम्बद्ध रहना पड़ा। स्वतंत्रता आन्दोलन में भी आपकी भूमिका महत्वपूर्ण रही और 1942 के आंदोलन में गोरखपुर तथा बनारस की जेलों में नजरबंद रहे। पत्रकारिता में आपका मन नहीं बसा एवं बी०टी० करते समय पं० सीताराम चतुर्वेदी की सहायता से 'पंचोली आर्ट्स पिक्चर्स' लाहौर तात्कालिक पाकिस्तान में फिल्मी गीत लिखने का अवसर मिला। लाहौर और फिर बम्बई में रहकर आपने कई हिंदी और भोजपुरी फिल्मों के गीत लिखे, जो कालजयी बने। अशोक कुमार, किशोर साहू आदि के साथ कार्य करने का भी अवसर मिला। गीत लेखन के साथ ही आपके कुशल अभिनय, ने सीने जगत में एक अमिट छाप छोड़ी। यूं कहा जाय कि हिंदी फिल्मों को भोजपुरी गीतों से परिचित कराने का श्रेय आपको ही जाता है। 1948 में रिलीज, दिलीप कुमार और कामिनी कौशल अभिनीत 'नदिया के पार' फिल्म के लिए आप द्वारा लिखा गया 'कठवा के नइया बनइहे रे मलहवा' बालीवुड का पहला भोजपुरी गीत प्रचलित हुआ जो भोजपुरी पट्टी की जुबान पर अब भी प्रचलित है। इस फिल्म का 'मोरे राजा हो, ले चल नदिया के पार' गीत, सुपरहिट हुए थे। 18 जनवरी, 2009 को हुए देहत्याग से पहले मूलतः भोजपुरी परिवेश से सम्बद्ध होने के कारण आप मोतीजी को वह यथेष्ट सम्मान और प्रसिद्धि नहीं मिला, जिसकी कसक आप में साफ दिखता रहा, आप साहित्य से जुड़े सभी सम्मानों के हकदार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ० कृष्णदेव उपाध्याय और डॉ० रामचन्द्र तिवारी ने भी इस बात को स्वीकार किया था कि, हिन्दी संसार ने मोती बी०ए० जी के कविकर्म का उचित मूल्यांकन नहीं किया। फिर भी मोती बी०ए० भोजपुरी कविता और भोजपुरिया समाज में बहुत समादृत हुए। 'सेमर के फूल' और 'तुलसी रसायन' आपके लोकप्रिय भोजपुरी काव्य संग्रह हैं। कालिदास कृत 'मेघदूत' का भोजपुरी काव्यानुवाद भी आपके द्वारा किया गया। 'असो आइल महुआबारी में बहार सजनी', 'कटिया के आइल सुतार', 'तिसिया के रंग सरसइया के सारी', 'कहवाँ से आइल अन्हरिया सुरुज दियना बारेले हो', 'सनन सनन सन बहेले पुरवइया' आपके कालजयी भोजपुरी गीत हैं। भोजपुरी और हिन्दी के साथ-साथ उर्दू और अंग्रेजी में भी बहुत अच्छी कविताएँ आपनें लिखी। रॉजटी के 'दि ब्लेस्ड डेमजल' का 'प्यार की रूपसी' और कॉलरिज के 'दि राइम ऑफ दि एनशंट मेरिनर' का 'माझी की पुकार' शीर्षक से आप द्वारा काव्यानुवाद किया गया। आपके अंग्रेजी में 3 और उर्दू में 5 काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं। अपने कालजयी गीतों के लिए मोती बी०ए० सदा याद किये जायेंगे। मोती बी०ए० ने शेक्सपीयर के 109 सानेट्स का हिन्दी पद्यानुवाद किया है, कैसे कहूँ, सुभद्रा, सिन्दूर, भक्त ध्रुव, साजन, नदिया के पार, सुरेखा हरण, किसी की याद, काफ़िला, अमर आशा, इन्द्रासन, राम विवाह, गजब भइले रामा, चम्पा चमेली, सेमर के फूल (भोजपुरी), भोजपुरी सानेट, तुलसी रसायन (भोजपुरी), भोजपुरी मुक्तक, मोती के मुक्तक, रश्के गुहर (उर्दू शायरी), दर्दे गुहर (उर्दू शायरी), तिनका-तिनका, शबनम-शबनम, (उर्दू शायरी), इतिहास का दर्द (निबंध संग्रह), मेघदूत (भोजपुरी काव्यानुवाद), लतिका, बादलिका, समिधा, प्रतिबिम्बिनी, अथेति, माझी की पुकार (काव्यानुवाद) प्यार की रूपसी, मोती बी०ए० ग्रन्थावली 9 खण्डों में आप द्वारा लिखी गई।
साभार:-रविकान्त उपाध्याय जी