क्रांतिकारी बाबू विश्वनाथ राय की जयंती पर नमन

सन 1932 में इलाहाबाद के जिला जज के सामने एक क्रांतिकारी आरोपी को घंटा घर पर तिरंगा फहराने के आरोप में पेश किया गया।अंग्रेज जज ने देखा कि क्रांतिकारी ला का छात्र है तो जज ने आरोपी को संकेत किया कि यदि वह ये काम छोड़ने का आश्वाशन दे तो उसे आरोपों से मुक्त किया जा सकता है और अच्छी सरकारी नौकरी की भी संभावना है।इस पर आरोपी ने उत्तर दिया मैं यहां अपने राष्ट्रीय कर्तव्यों का निर्वहन करने आया हूँ न कि जज से बहस करने।यदि जज उन्हें छोड़ भी देते हैं तो भी वे वही काम करेंगे जिनके लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया है।जज ने तत्काल आरोपी को सख्त कैद की सजा सुना दिया।


यहीं से खुखुन्दू निवासी और स्वतंत्रता सेनानी विश्वनाथ राय की क्रांति कारी जीवन और जेल यात्रा शुरू हुई जो आगे दो दशकों तक जारी रही। कैद के दौरान विश्वनाथ राय के एक रिश्तेदार  रिटायर्ड जज और कोदई राय जो तमकुही राजा के सेक्रेटरी थे उन दोनों ने इलाहाबाद के सी आई डी के अंग्रेज अफसर से विश्वनाथ राय के बिना जानकारी के उनकी रिहाई की पैरवी किया।अंग्रेज अफसर मिस्टर फिल ने कहा विश्वनात राय एक बहुत ही हार्ड कोर क्रांतिकारी है और वह ना तो माफी मांगेगा और न ही कोई वायदा करेगा।


मलाका और फैज़ाबाद जेल में विश्वनाथ राय का रंगून कंसीपीरसी केस के मर्तबा हुसैन,जौनपुर के राजदेव सिंह और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों से मुलाकात हुई।विश्वनाथ राय ने अन्य क्रान्तिकारि से हिंदुस्तान जनतांत्रिक सेना में युवकों को भर्ती कराने की अपील किया जिससे फिरंगियों से सीधे शशात्र लड़ाई में हिस्सा लिया जा सके।


पहली जेल की अवधि काटने के बाद उन्होंने ला की अंतिम वर्ष की परीक्षा पास करके पूरी तरह क्रांतिकारी जीवन को अपनाते हुए भूमिगत हो गए।


वह सेना और पुलिस में विद्रोह कराने के उद्देष्य से पंजाब,मध्यप्रदेश,उत्तर प्रदेश और बिहार में खुफिया तौर पर सक्रिय हो गए।विद्रोह संबंधित पर्चे पकड़े भी जाते थे और संबंधित अंग्रेज पुलिस अधिकारी और कर्मी निलंबित भी होते थे।लेकिन लंबे समय तक विश्वनाथ राय को पुलिस नही पकड़ पाई। इस दौरान एक बार इलाहाबाद में अंग्रेज चांसलर की हत्या की जिम्मेवारी विश्वनाथ राय को सौंपी गई पर जिसे रिवाल्वर लाने की जिम्मेवारी सौंपी गई थी वह समय से हथियार नही पहुंचाने के कारण इस योजना टालना पड़ा।


हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी में युवक जुड़ते गए।इसी दौरान बंगाल के विश्वविख्यात क्रांतिकारी,और लेनिन के साथी मानवेन्द्र राय सीतापुर के युवक सम्मेलन में विश्वनाथ राय से मिले। दोनों में एच एस आर ऐ के विधान के बारे में लम्बी मन्त्रणा हुई।मानवेन्द्र रॉय ने विश्वनाथ को पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के चीनी मिलों के श्रमिकों के बीच संगठनात्मक जिम्मेवारी सौंपी।ध्यय यह था कि क्रान्तिकारि,किसान और श्रमिक मिल कर अंग्रेजों से लड़ें।


उनदिनों चंद्र शेखर आज़ाद और भगत सिंह के संगठन एच एस आर ए को कंम्यूनिस्ट,अंग्रेज,आर एस एस इत्यादि आतंक वादी संगठन के रूप में पुकारते थे।वुश्वनाथ रॉय का लंबा समय इस धारणा को तोड़ने में भी बीतता था।लेकिन पार्टी का काम इतने गुप्त रूप से होता था कि इस धारणा को तोड़ने के लिए व्यापक जन सम्पर्क कठिन कार्य था।


अंग्रेजों के पास क्रांतिकारी विश्वनात राय की कई फाइलें खुल गई थीं और वे इस क्रांतिकारी को किसी भी रूप में पकड़ कर खत्म करना चाहते थे।1939 के आस पास विश्वनाथ राय मलेरिया से पीड़ित हो गए,इनके साथियों ने उन्हें खुखुन्दू पहुंचा दिया।किसी ने गोरखपुर के एस पी आफिस इस बात की मुखबरी कर दी और अंग्रेज बड़ी संख्या में गाओं आ के घर पर डेरा डाल दिया।संयोग से वुश्वनाथ राय के पास उस वक्त उनका रिवाल्वर भी नही था और मलेरिया से वे बेहद कमजोर हो गए थे, पुलिस ने उन्हें दबोच लिया।


इसके बाद तो उन्हें सात वर्षों तक देश के विभिन्न जेलों में जिसमें राजस्थान के देवली के कंसंट्रेशन कैम्प,बरेली जेल,कानपुर,फतेहपुर मुख्य हैं जेलों में बिना मुकदमा चलाये वर्षों तक कैद में रखा और यातनाएं दीं।देवली कंसंट्रेशन कैम्प में देश के सभी प्रान्तों के खतरनाक क़ैदियों को रखा गया था।सन तैंतालीस चौअलिस में जब अंग्रेज जापानियों से हार रहे थे तब उन्होंने देवली के इन कैदियों को मार के राजस्थान के किसी भाग में दफन की योजना बनाई।संयोग से यह बात कैदियों को पता चल गई और विश्वनाथ रॉय ने क़ैदियों के कैम्प तुड़वाने के लिए बत्तीस दिनों तक भूख हड़ताल किया।यह बात किसी माध्यम से गांधी जी तक भी पहुंची और उन्होंने ने भी अंग्रेजों पर कैम्प तुड़वाने का दबाव डाला।अंत में कैम्प टूटा और सभी कैदियों को वापिस उनके प्रांतों के जेलों में भेज दिया गया।इसी प्रकार यातनाएं सहते,जेल तोड़ के भागने के योजनाओं पर काम करते विश्वनाथ राय को सन 1946 के अंत में फिरंगियों ने रिहा किया।