रक्षा बंधन पर्व और हमारी संस्कार : अरविन्द पाण्डेय


सलेमपुर, देवरिया। रक्षा बंधन का शाब्दिक अर्थ रक्षा करने वाला बंधन मतलब धागा है। इस पर्व में बहनें अपने भाई के कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और बदले में भाई जीवन भर उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं। रक्षा बंधन को राखी या सावन के महिने में पड़ने के वजह से श्रावणी व सलोनी भी कहा जाता है। यह श्रावण माह के पूर्णिमा में पड़ने वाला हिंदू तथा जैन धर्म का प्रमुख त्योहार है।


श्रावणी पूर्णिमा में, रेशम के धागे से बहन द्वारा भाई के कलाई पर बंधन बांधे जाने की रीत को रक्षा बंधन कहते हैं। पहले के समय रक्षा के वचन का यह पर्व विभिन्न रिश्तों के अंतर्गत निभाया जाता था पर समय बीतने के साथ यह भाई बहन के बीच का प्यार बन गया है।


*रक्षा बंधन का इतिहास*


एक बार की बात है, देवताओं और असुरों में युद्ध आरंभ हुआ। युद्ध में हार के परिणाम स्वरूप, देवताओं ने अपना राज-पाठ सब युद्ध में गवा दिया। अपना राज-पाठ पुनः प्राप्त करने की इच्छा से देवराज इंद्र देवगुरु बृहस्पति से मदद की गुहार करने लगे। तत्पश्चात देव गुरु बृहस्पति ने श्रावण मास के पूर्णिमा के प्रातः काल में निम्न मंत्र से रक्षा विधान संपन्न किया।


*येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबलःतेन त्वामभिवध्नामि रक्षे मा चल मा चलः*


इस पुजा से प्राप्त सूत्र को इंद्राणी ने इंद्र के हाथ पर बांध दिया। जिससे युद्ध में इंद्र को विजय प्राप्त हुआ और उन्हें अपना हारा हुआ राज पाठ दुबारा मिल गया। तब से रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाने लगा।


*सुभद्राकुमारी चौहान*


ने अपनी राखी कविता में उल्लेख किया है । 
मैंने पढ़ा शत्रुओं को भी जब जब राखी भिजवाई,
रक्षा करने वे दौड़ पड़े तो राखी बन्द शत्रु भाई।।


*चंद्रशेखर आज़ाद और राखी का प्रसंग*


एक बार चंद्रशेखर आज़ाद जी फिरंगी से बचने के लिए वेश बदल कर कही जा रहे थे अचानक बहुत जोर से बारिश आने लगी और वो बचने के लिए एक मकान में जा पहुँचे, वहाँ एक विधवा अपनी कुवारी बेटी के साथ रहती थी, चन्द्रशेखर जी काफी बलिष्ठ थे उनको देखकर वो औरत को शंका हो गया कि कोई डांकु आ गया है , पर आज़ाद जी ने जब अपना परिचय दिया तो काफी इज्जत से उनका आदर किया गया,बात ही बात में आज़ाद जी को ये जानकारी हो गयी कि इनकी लड़की की शादी गरीबी के कारण नही हो पा रही है ,उन्होंने औरत से कहा मेरे ऊपर पांच हज़ार का फिरंगियों ने इनाम रखा है आप उनको खबर दे दो वो मुझे पकड़कर आपको इनाम दे देंगे, लेकिन उस औरत ने कहा कि आप मेरे भाई जैसे है आप आंदोलन में भाग लो और एक कपड़ा को राखी के तरह आज़ाद को बांध दिया और वचन ली, सुबह जब आंख खुली तो औरत ले तकिए के पास पाँच हज़ार रुपये रखे थे और एक पत्र भी था  मेरी प्यारी बहन को एक छोटी से भेंट ,,,आज़ाद।


*भगवान श्रीकृष्ण और बहन द्रौपदी का प्रसंग*


इतिहास मे कृष्ण और द्रौपदी की कहानी प्रसिद्ध है, जिसमे युद्ध के दौरान श्री कृष्ण की उंगली घायल हो गई थी, श्री कृष्ण की घायल उंगली को द्रौपदी ने अपनी साड़ी मे से एक टुकड़ा बाँध दिया था, और इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी संकट मे द्रौपदी की सहायता करने का वचन दिया था।उसी का रक्षा के लिए चिर हरण वाला प्रसंग में द्रोपदी की चिर को बचाया था।


*बहादुर शाह और रानी कर्मावती*


राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएँ उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ साथ हाथ में रेशमी धागा भी बाँधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हे विजयश्री के साथ वापस ले आयेगा। राखी के साथ एक और प्रसिद्ध कहानी जुड़ी हुई है। कहते हैं, मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्व सूचना मिली। रानी लड़ऩे में असमर्थ थी अत: उसने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेज कर रक्षा की याचना की। हुमायूँ ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुँच कर बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती व उसके राज्य की रक्षा की


*सिकन्दर की पत्नी और राजा पुरूवास*


एक अन्य प्रसंगानुसार सिकन्दर की पत्नी ने अपने पति के हिन्दू शत्रु पुरूवास को राखी बाँधकर अपना मुँहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकन्दर को न मारने का वचन लिया। पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बँधी राखी और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकन्दर को जीवन-दान दिया।


ऐसे अनेकानेक उदाहरण इतिहास में मिलता है जो हमे अपने फ़र्ज़ के प्रति जागरूक करता है