सावन का दर्द

हे ! सावन के नीर निर्मल
क्यू  करते हो अध पतन?
किसकी प्यास मिटाने आये
क्यू अश्क बहाये अपनें नयन?
बिरह वेदना में अश्क बहा कर
जलमय कर डाला सब तन
बिरह व्यथा किसकी है ?
सावन को अश्क बहाने की
गिरि,पहाड़, बन ,कानन,उपवन
सुधा अमृत बरसाने की
ग्यारह मास तुम आस लगाये
अपने प्रियतम पाने की
कहां तुम्हारा सच्चा साथी
क्यू उसको नही दया आई?
सावन तुम्हारी बिरह वेदना
उसको क्यू नही सताई?
चुप हो जाओ मेरी बहना
अबला को है सब दुःख सहना
मन में धीरज मीत को जोडो़
प्रियतम से मत प्रित को तोडो़
फिर आये मधुमास कहना 
आस लगाये "प्रेमी" से रहना



दिनेश प्रेमी, देवरिया (उ०प्र०)