आपकी तरह ही एक राही

हम दिए तो देकर भूल गए।


वो लिए तो लेकर भूल गए।


घर में आर ओ लगवाते ही,


मेटिया गागर भूल गए।


नौकर से मालिक बनते ही,


नौकर चाकर भूल गए।


प्यार से पाला एक परिंदा,


उसको खाकर भूल गए।


लोगों ने जब आंख दिखाया,


हम मुस्काकर भूल गए।


तुमको हम किस तरह से पाए,


तुम हमी को पाकर भूल गए।


थोड़ा सुधार के साथ है,


आपकी तरह ही एक राही।


मुकेश कुमार मिश्र