आदमी जब से मैं भी बुरा हो गया ।
मेरा दुश्मन तभी से हवा हो गया ।
आप अब कैसे तकलीफ देंगे मुझे,
दर्द ही जब हमारा दवा हो गया ।
मैंने किस्सा लिखा था बड़े चाव से,
फिर ये क्यूं माजरा दूसरा हो गया ।
रिश्तेदारी नहीं दोस्ती भी नहीं,
आदमी अब वो काफी बड़ा हो गया ।
जब चला काफिला तो बहुत ठीक था,
रास्ते में कहीं मशवरा हो गया ।
कोई मोहलत नहीं कुछ सफाई नहीं,
एक झटके में सब फैसला हो गया ।
तुमको सब रास्तों में ही कांटे मिले,
मैं जिधर भी चला रास्ता हो गया ।
आपकी तरह ही एक राही,
मुकेश कुमार मिश्रा,
दिनांक, 18/09/2020