भारतीय संस्कृति और मानवतावाद के चितेरे महाकवि थे जयशंकर प्रसाद-चतुरानन


_कालजयी कवि थे जयशंकर प्रसाद_


*रवीश पाण्डेय*


सलेमपुर,देवरिया। महाकवि जयसंकर प्रसाद भारतीय संस्कृति और मानवतावाद के अप्रतिम रचनाकार थे उन्होंने न सिर्फ भारत के स्वाधीनता आंदोलन में प्राण भरने वाले गीत व महाकाव्य लिखे बल्कि ऐतिहासिक नाटक कहानियां और अपने समय को प्रभावित करने वाले श्रेष्ठ निबंधकार के रूप में महत्वपूर्ण योगदान दिया।उक्त बातें डॉ चतुरानन ओझा ने जयसंकर प्रसाद की पुण्यतिथि पर स्कॉलर्स पब्लिक स्कूल में आयोजित एक गोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा।


गोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा सुनील पाण्डेय ने कहा कि जयसंकर प्रसाद की कामायनी आधुनिक हिंदी समाज को प्रभावित करने वाली सबसे महत्वपूर्ण महाकाव्य है इसने न सिर्फ स्वस्थ सौंदर्यबोध पैदा किया बल्कि एक नवीन जागरण का भाव भी उत्पन्न किया।विनय सिंह खेमदेई ने कहा कि उनके नाटक अंग्रेजों द्वारा पददलित किये जा रहे भारतीय मानस के भीतर नवमेश पैदा करने वाले थे।ध्रुवस्वामिनी स्कन्दगुप्त चंद्रगुप्त जैसे नाटकों और उसमें प्रत्युक्त गीतों ने भारत के शिक्षित वर्ग के भीतर इतिहास बोध और आत्मगौरव पैदा किया।इन्द्रहास पाण्डेय उर्फ पप्पू पाण्डेय ने कहा कि सभी वैचारिक सम्प्रदाय जतसंकर प्रसाद की रचनाओं से प्रेरणा लेते हैं।डॉ शशिकांत तिवारी गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कहा कि प्रसाद जी के गीत आज भी रचनाकारों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।कठिन स्थितियों से जूझने , अतीत को वर्तमान से जोड़ते हुए भविष्य निर्माण के लिए उन्हें प्रेरित करने में दिशाबोधि हैं।


संचालन करते हुए रवीश पाण्डेय ने कामायनी का एक उद्धरण देते हुए आज के दौर में उनकी प्रासंगिता को जाहिर किया।


"शक्ति के विद्युत कण जो व्यस्त 


विकल विखरे हैं हो निरुपाय


समन्वय उनका करे समस्त


विजयनी मानवता हो जाय"


गोष्ठी को संजय मिश्रा,राजेश्वर दुबे,डॉ धर्मेंद्र पाण्डेय,गणेश मिश्र,रमेश मिश्र,संजय गुप्ता,संजय श्रीवास्तव आदि ने संबोधित किया।